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प्रकार के हैं । अर्थात्-जीव अनुक्रम से चेतनरूप एक ही भेद द्वारा एक प्रकार का है। त्रस और स्थावर इन दो भेंदों द्वारा दो प्रकार के है । वेद (स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसकवेद) के तीन भेदों से तीन प्रकार के है । गति (नरक, तिर्यंच, मनुष्य, देव) के चार भेदों से चार प्रकार के है । इन्द्रिय (स्पर्शना, रसना, घ्राण चक्षु, श्रोत्र) के पांच भेदों द्वारा पांच प्रकार के है और काय (पृथ्वी, अप्, अग्नि, वायु, वनस्पति और त्रस) के छह भेदों द्वारा छह प्रकार के है ॥ ३ ॥ एगिदिय सुहुमियरा, सन्नियर पणिंदिया य स बि ति चउ, । अपजत्ता पज्जत्ता, कमेण चउदस जिय-ठाणा ॥४॥
सूक्ष्म और इतर अर्थात् बादर एकेन्द्रिय और दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चउरिन्द्रिय के साथ संज्ञी और इतर अर्थात् असंज्ञी पंचेन्द्रिय (और ये सभी) अनुक्रम से पर्याप्त और अपर्याप्त (ऐसे) जीव के चौदह स्थानक (भेद) हैं ॥ ४ ॥ नाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा, । वीरियं उवओगो य, एअं जीवस्स लक्खणं ॥५॥
ज्ञान, दर्शन और निश्चय से तथा चारित्र, तप, वीर्य और उपयोग ये जीव के लक्षण हैं ॥ ५ ॥ आहार सरीरिंदिय, पज्जत्ति आणपाण-भास-मणे, । चउ पंच पंच छप्पिय, इग-विगला-सन्नि-सन्नीणं ॥ ६ ॥
जीवविचार-नवतत्त्व