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त्रिजगत्पति ने पंचमुष्ठि के द्वारा सर्व केशों का लोच किया। शक्र इंद्र ने वे केश दूष्य वस्त्र में लेकर क्षीरसागर में प्रवाहित कर दिया। तब प्रभु ने सिद्ध भगवन्त को नमस्कार करके चारित्र ग्रहण किया। जन्म से तीस वर्ष निर्गमन होने पर मार्गशीर्ष मास की कृष्ण दशमी को चंद्र के हस्तोत्तरा नक्षत्र में आने पर दिवस के अंतिम प्रहर में छठ (बेला- २ उपवास) किया है, जिन्होंने ऐसे प्रभु को चारित्र के साथ ही मनः पर्यव ज्ञान उत्पन्न हुआ ।
(गा. 159 से 199)
आचार्य हेमचन्द्र विरचित त्रिषष्टिशलाका पुरुष चरित्र महाकाव्य के दशम पर्व में श्री महवीर जन्म, प्रवज्या वर्णन नामक द्वितीय सर्ग ॥
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)