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________________ T दूसरी शिबिका पहली शिबिका में अंतर्हित हो गई । जगत् प्रभु ने प्रदक्षिणा देकर शिबिका पर चढ़कर उसमें रहे चरणपीठ युक्त सिंहासन को अलंकृत किया । मांगलिक श्वेत वस्त्रों से चंद्रिका सहित चंद्र की भांति और सर्व अंग पर धारण किये आभूषणों से दूसरे कल्पवृक्ष की तरह प्रभु शोभा देने लगे। प्रभु पूर्वाभिमुख बैठे, तब कुलमहत्तरा स्त्री पवित्र होकर शुद्ध वस्त्रों को पहन कर विचित्र रत्नालंकारों को धारण करके, शाखा द्वारा वृक्ष की तरह, हाथ में वस्त्र से युक्त शोभा देती हुई प्रभु के दक्षिण की ओर मन स्थिर करके बैठी । मोती के अलंकारों और निर्मल वस्त्रों को पहन कर एक स्त्री प्रभु के मस्तक पर चांदनी की जैसे चंद्र को धारण करती है, वैसे छत्र धारण करके खड़ी रही। दो स्त्रियाँ सर्व अंग में सुवर्णाभरण पहन कर मेरु पर्वत के तट में दो चंद्र के समान प्रभु के दोनों ओर सुंदर चंवर लेकर खड़ी रही। एक बाला रजत की झारी हाथ में लेकर वायव्य दिशा में खड़ी हुई । एक स्त्री तालवृंत हाथ में लेकर अग्नि दिशा में खड़ी हुई। शिबिका के पृष्ट भाग में वैडूर्य रत्न के दंडवाले और एक हजार आठ सुवर्ण की शलाका वाले पांडु छत्र को लेकर राजा खड़े रहे । शिबिका के दोनों ओर सुधर्म एवं ईशान इंद्र तोरण के स्तंभ की तरह चंवर लेकर खड़े रहे। एक हजार पुरुषों से उठाई जाने वाली वह शिबिका प्रथम सेवक पुरुषों ने उठाई । पश्चात् शुक्र, ईशान, बलि और चमर प्रमुख इंद्रों ने तथा देवताओं ने उठाई। उसमें दक्षिण के ऊपर के भाग से शक्र इंद्र ने उठाई । उत्तर के भाग से ईशानपति ने उठाई और दक्षिण तथा उत्तर के बाजु के अधो भाग से चमरेन्द्र और बलीन्द्र ने धारण की। इसी प्रकार अन्य भुवन पति देवताओं ने अपनी अपनी योग्यता के अनुसार वहन की। उस समय अत्यन्त त्वरित गति से जाते आते अनेक देवताओं से वह स्थान सायंकाल में पक्षियों से आकाश के समान संकीर्ण हो गया। देवताओं से वहन करी हुई उस शिबिका द्वारा अनुक्रम से प्रभु ज्ञातखंड नामक उत्तम उपवन के समीप में पधारे। वह उपवन, प्रिय के समान हिमऋतु के आगमन से मानो रोमांचित हुई हो, वैसी चारोली की लताओं से मनोहर लग रहा था। मानो वनलक्ष्मी ने कसुंबा के रक्तवर्णीय वस्त्र पहने हो वैसे पक्व नारंगी के वनद्वारा अंकित था । कृष्ण इक्षुखंड में परस्पर पात्ररूप से आष करते भंवरों की आवाज से मुसाफिरों को बुला रहा हो वैसा लगता था । उस उद्यान में प्रवेश करने के बाद प्रभु ने शिबिका से उतर कर सर्व आभूषणों को त्याग दिया। उस समय इंद्र ने प्रभु के स्कंध पर एक देवदूष्य वस्त्र डाला । पश्चात् त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 31
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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