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वाली एवं कंठ में लटकती हुई मालाएं पहनने वाली, इस प्रकार अनेक कुलीन स्त्रियों के साथ राजा रानी ने रात्रि जागरण उत्सव किया। जब ग्यारहवाँ दिन
आया तब सिद्धार्थ राजा ने और त्रिशला देवी ने पुत्र का जातक कर्म महोत्सव पूर्ण किया। जिनकी सर्व इच्छाएँ सिद्ध हो गई, ऐसे सिद्धार्थ राजा ने बारहवें दिन में अपने सर्व ज्ञाति जनों, संबंधियों एवं बंधुओं को बुलाया। वे सभी अपने हाथों में अनेक प्रकार की मांगल्य भेंट लेकर आए। योग्य प्रतिदान के व्यवहार में तत्पर राजा ने उनका सत्कार किया। तब सिद्धार्थ राजा ने उन सबके सामने उद्घोषणा की कि “इस पुत्र के गर्भ में आने पर हमारे घर में, नगर में एवं मांगल्य में धनादिक की वृद्धि हुई है। इसलिए इसका वर्धमान नाम स्थापित किया जाता है।" इस प्रकार सुनकर उन बंधुओं ने भी हर्षित होकर कहा कि, 'ऐसा ही हो'। पश्चात् 'प्रभु तो बड़े बड़े उपसर्गो से भी कंपित होंगे नहीं. ऐसा सोचकर इंद्र ने जगत्पति का महावीर नामकरण किया। भक्तिवंत सुर और असुरों से सेवित, अमृतवर्षिणी दृष्टि से पृथ्वी का सिंचन करते हुए और एक हजार आठ लक्षणों से उपलक्षित ऐसे प्रभु यद्यपि स्वभाव से ही गुणवृद्ध तो थे ही, अनुक्रम से वय के अनुसार बढ़ने लगे।
___ (गा. 91 से 102) एक बार आठ वर्ष से कुछ कम वय में प्रभु राजपुत्रों के साथ उम्र के अनुसार क्रीड़ा करने गये। उस समय अवधिज्ञान के द्वारा यह जानकर इंद्र ने देवताओं की सभा में, धैर्यता में महावीर ऐसे वीर भगवंत की प्रशंसा की। यह सुनकर कोई ईष्यालु (मत्सरी) देव 'मैं उन महावीर को क्षोभित करूं' ऐसा सोचकर जहाँ प्रभु क्रीड़ा कर रहे थे, वहाँ आया। उस समय प्रभु राजपुत्रों के साथ आमल- की क्रीड़ा कर रहे थे। वह देव वहाँ किसी वृक्षमूल के पास माया से विशाल सर्प बन गया। उसे देखकर सभी राजपुत्र भयभीत होकर दसों दिशाओं में भागने लगे। तब प्रभु ने हंसते हंसते उसे रस्सी की भांति ऊंचा करके दूर पृथ्वी पर फेंक दिया। यह देख सभी राजकुमार लज्जित होकर वापिस क्रीड़ा करने के लिए एकत्रित हो गये। वह देव राजकुमार का रूप धारण कर वहाँ आया। सर्व कुमार एक वृक्ष पर चढ़ गये। प्रभु सर्व कुमारो से पहले वृक्ष के अग्र भाग पर जा चढ़े। अथवा ‘जो लोकाग्र पर जाने वाले हैं, उनको वृक्ष के अग्र पर पहुँचना तो क्या बात है, वहाँ रहे हुए प्रभु मेरु के शिखर पर सूर्य की भांति सुशोभित होने लगे और शाखाओं में लटकते अन्य कुमार वानरों की भांति 26
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)