________________
किया वह अभी भी उपस्थित है। लेकिन कर्म के वश में हुए नीच कुल में उत्पन्न हुए अर्हन्तों को किसी महाकुल में ले जाने का सर्वदा हमारा अधिकार है। तो फिलहाल भरतक्षेत्र में उच्च वंश में उत्पन्न हुए राजा-रानी कौन है ? कि जिनको जैसे कुंद (डोलर) के पुष्प में से कमल पुष्प में भ्रमर ले जाए, वैसे मैं भी उनका संचार करूं। अहो! मुझे ज्ञात हुआ है कि- इस भरतक्षेत्र में महीमंडल के मंडन रूप क्षत्रियकुंड नामक नगर है। जो कि मेरी नगरी के जैसा सुंदर है। वह विविध चैत्यों का स्थल है। वह धर्म का एक कारण है, अन्याय से रहित है, और साधुओं से पवित्र है। वहाँ के निवासी मृगया और मद्यपान आदि व्यसनों से अस्पृष्ट हैं। इससे वह शहर तीर्थ की तरह भरतक्षेत्र में जीवों को पवित्र करने वाला है। उस नगर में ईक्ष्वाकु ज्ञात वंश में उत्पन्न सिद्धार्थ नाम का प्रख्यात राजा है। जो कि धर्म से ही अपनी आत्मा को सदैव सिद्धार्थ मान्य करता है। वह जीवाजीवादि तत्त्वों का मर्मज्ञ है, न्यायमार्ग का विशाल राहगीर है। प्रजा को सन्मार्ग में स्थापित करने वाला है, पिता के सदृश प्रजा का हितकामी है। दीन, अनाथ आदि लोगों का उद्धार करने में बंधुरूप है। शरणागत का शरण्य है और क्षत्रियों में शिरोमणि है। उसके सतियों में श्रेष्ठ और जिसके गुण और आकृति स्तुति करने योग्य है ऐसी पुण्य भूमि स्वरूपा त्रिशला नामकी मुख्य पटराणी है। स्वभाव से ही निर्मल और गुणरूप तरंगों वाली वह देवी सांप्रतकाल में गांगा नदी की भांति पृथ्वी को पवित्र करती है। स्त्रीजन्म की सहचरिणी माया से भी अकलंकित और स्वभाव से ही सरला ऐसी वह रामा पृथ्वी पर कृतार्थ नामवाली है। अभी वह देवी दैवयोग से गर्भिणी भी है, इसलिए मुझे उसके और देवानंदा के गर्म का संक्रमण (परिवर्तन-अदल बदल) करना योग्य है।"
(गा. 7 से 24) इस प्रकार विचार करके इंद्र अपनी पद सेना के सेनापति नैगमैषी देव को बुलाकर तथा प्रकार से करने की शीघ्र ही आज्ञा दी। नैगमेषी देव ने भी तुरंत ही स्वामी की आज्ञा के अनुसार देवानंदा और त्रिशला के गर्भ का संक्रमण किया। उस समय शय्या में सोई हुई देवानंदा ब्राह्मणी ने पूर्व में देखे चौदह महास्वप्नों को मुख में से बाहर निकलते देखा, इससे वह तुरंत ही बैठी हो गई, शरीर से अत्यन्त निर्बल और ज्वर से जर्जरित हो गई और छाती कूटती हुई "किसी ने मेरे गर्भ का अपहरण कर लिया' ऐसा बारबार चिल्लाने लगी,
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
21