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________________ का जीव चित्रगुप्त नामके सोलहवें, गवालि का जीव समाधि नाम के सत्तरहवें, गार्गलु का जीव संवर नाम के अठारहवें, द्वीपायन का जीव यशोधर नाम के उन्नीसवें, कर्ण का जीव विजय नामके बीसवें, नारद का जीव मल्ल नाम के इक्कीसवें, अंबड का जीव देव नाम के बाइसवें बारहवां चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त का जीव अनंतवीर्य नाम के तेवीसवें और स्वाति का जीव भद्रकृत नाम के चौवीसवें तीर्थंकर होंगे। (गा. 186 से 200) इसी समय में दीर्घदंत, गूढदंत, शुद्धदंत, श्रीचंद्र, श्रीभूति, श्रीसोम, पद्म, महापद्म, दशम, विमल, विमलवाहन और अरिष्ट ये बारह चक्रवर्ती होंगे। नंदी, नंदिमित्र, सुंदरबाहु, महाबाहु, अतिबल, महाबल, बल, द्विपृष्ट और त्रिपुष्ट ये नौ अर्धचक्री (वासुदेव) होंगे। जयंत, अजित धर्म सुप्रभ, सदर्शन, आनंद, नंदन, पद्म और संकर्षण ये नौ बलराम होंगे और तिलक, लोहजंघ, वज्रजंघ, केशरी, बलि, प्रहल्हाद, अपराजित, भीम और सुग्रीव ये नौ प्रतिवासुदेव होंगे। इस प्रकार उत्सर्पिणी काल में त्रिषष्टि शलाका पुरुष होंगे।" (गा. 201 से 207) प्रभु के इस प्रकार कहने के पश्चात् श्री वीर प्रभु को सुधर्म गणधर ने पूछा कि 'हे स्वामिन् केवल ज्ञान रूपी सूर्य कब और किसके पश्चात् अस्त होगा? प्रभु ने फरमाया- 'मेरे मोक्षगमन के पश्चात् कितनेक काल में जंबू नामक तुम्हारे शिष्य अंतिम केवली होंगे। उसके पश्चात् केवल ज्ञान का उच्छेद हो जाएगा। केवलज्ञान के उच्छेद हो जाने पर मनः पर्यवज्ञान भी नहीं होगा। पुलाकलब्धि, या परमावधि ज्ञान भी नहीं होगा। श्रेणी और उपशम श्रेणी का भी विनाश हो जाएगा। साथ ही आहारक शरीर, जिनकल्प और त्रिविध संयम (परिहार विशुद्धि, सूक्ष्म संपराय और यथाख्यात चारित्र) भी नहीं रहेंगे। उनके शिष्य प्रभव चौदह पूर्वधर होंगे और उनके शिष्य शय्यंभव भी द्वादशांगी के पारगामी होगे। वे पूर्व में से उद्धार करके दशवैकालिक सूत्र की रचना करेंगे। उनके शिष्य यशोभद्र सर्वपूर्वधारी होंगे एवं उनके शिष्य संभूति विजय के शिष्य भद्रबाहू भी चौदहपूर्वी होंगे। संभूतिविजय के शिष्य स्थूलभद्र चौदहपूर्वी होंगे। उसके पश्चात् अंतिम चार पूर्व का उच्छेद हो जाएगा। उसके पश्चात् महागिरि और सुहस्ति से वज्रस्वामी तक इस तीर्थ प्रवर्तक दस पूर्वधर होंगे।' इस प्रकार 322 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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