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शहर और देश के लिए अशुभ का द्योतक है।" इस प्रकार मुनियों के वचन सुनकर कल्की उसी क्षण कुपित होगा और भृकुटी चढ़ाकर, विकराल मुख करके यमराज जैसा भयंकर दिखाई देगा । उस समय नगरदेवता उसे कहेंगे कि 'अरे कल्की! क्या तेरी मरणेच्छा है कि जिससे तू इन मुनियों से द्रव्य की याचना कर रहा है ? देवता के इन वचनों से सिंह नाद से हस्ती के समान भयभीत हुआ कल्की नमस्कार पूर्वक उन मुनियों से क्षमायाचना करेगा। उसके पश्चात् कल्की राजा के नगर में भय सूचित करने वाले भयंकर उत्पात प्रतिदिन होने लगेगा। सत्तरह दिन तक लगातार मेघवृष्टि होगी। फलस्वरूप गंगा का प्रवाह विस्तृत होकर कल्की के नगर को डुबा देगा । उस समय मात्र प्रातिपद नामक आचार्य, कितनेक संघ के लोग, कुछ नगर जन और कल्की राजा उच्च स्थल पर चढ़ जाने से बच जायेंगे। शेष गंगा जल के प्रसारित प्रवाह में अनेक नगरवासी डूब कर मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे । जब जल का उपद्रव शांत हो जाएगा, तब वह कल्की नंद के द्रव्य से पुनः नया नगर बसायेगा । उसमें अच्छे अच्छे मकान बंधायेगा । साधुगण विहार करेंगे । समयानुसार धान्य की उत्पत्ि के कारणभूत मेघ बरसेगी । एक दमडे में कुंभ भरकर धान्य देगे, तो भी लोग धान्य खरीदेगे नहीं। इस प्रकार कल्की के राज्य में पचास वर्ष तक सुभिक्ष रहेगा। ऐस करते करते जब कल्की की मृत्यु का समय नजदीक आएगा, तब वह पुनः पाखंडियों को वेश छुड़ा देगा एवं बहुत उपद्रव करेगा। संघ के सहित प्रातिपद आचार्य को गाय के वाड़े में भरकर उनके पास यह दुराशय भिक्षा का छट्ठा भाग मांगेगा । तब संघ शक्रेन्द्र की आराधना करने के लिए कायोत्सर्ग करेंगे। उस समय शासनदेवी प्रकट होकर कहेगी कि, हे कल्की! यह तेरा कार्य तेरी कुशलता के लिए नहीं है।' संघ के द्वारा किये कायोत्सर्ग के प्रभाव से इंद्र का आसन चलित होने पर वे वृद्ध ब्राह्मण का रूप धारण करके वहाँ आयेंगे। तब सभा के मध्य विशाल सिंहासन पर बैठे कल्की को शक्रेन्द्र कहेंगे कि, “हे राजन्! तुमने इन साधुओं को बाड़े में क्यों भरा हैं ? कल्की कहेगा कि, "हे वृद्ध! ये सब मेरे नगर में रहने पर भी मुझे भिक्षा में से छट्ठा भाग भी कर रूप से नहीं देते। अन्य सर्व पाखंडी भी मुझे कर देते हैं और ये साधु देते नहीं हैं। इसलिए मैंने इनको किल्ले की तरह गायों के वाडों में भर दिया है । तब शक्रेन्द्र कहेगा कि “इसके पास तो कुछ भी नहीं है, और ये एक अंश भी अपनी भिक्षा में से कभी भी किसी को नहीं देते। इन भिक्षुकों के पास से भिक्षा का अंश मांगते
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व )
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