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है। इसलिए जिस मार्ग से वह आता है उस मार्ग में खाई खोदकर उसमें खेर के अंगारे संपूर्णतया भर दो और उसको ऊपर से पूर्णतया आच्छादन कर दो
और उसे पुल की तरह मालूम न पड़े, वैसा कर दो। जब सेचनक हाथी वेग से दौड़ता हुआ इधर आएगा, तब उसमें गिरकर मर जाएगा। कुणिक ने शीघ्र ही खेर के अंगारे से परिपूर्ण एक खाई उसके आने के मार्ग पर खुदवाई और उसे ऊपर से आच्छादित कर दी। इधर हल्ल विहल्ल अपने विजय से गर्वित होकर सेचनक हाथी पर बैठकर उस रात्रि में भी कुणिक के सैन्य पर आक्रमण करने के निए विशाला में से निकले। मार्ग में वह अंगारे वाली खाई आई। तब शीघ्र ही सेचनक ने उसकी रचना को विभंगज्ञान के बल से जान लिया, तो वह उसके तीर (किनारे) पर ही खड़ा रहा। उसे चलाने का अथक प्रयास करने पर भी वह टस से मस नहीं हुआ। तब हल्ल विहल्ल ने उस हाथी का तिरस्कार करते हुए कहा, कि, 'अरे सेचनक तू तो आज वास्तव में पशु हो गया है, इसीलिए इस समय रण में जाने के लिए कायर होकर खड़ा रह गया है। तेरे लिए ही तो हमने विदेशगमन किया और बंधु का त्याग किया। इसी प्रकार तेरे ही लिए हमने आर्य चेटक को ऐसे दुर्व्यसन में डाल दिया। जो अपने स्वामी पर सदा भक्त रहता है, ऐसे प्राणी का पोषण करना ही श्रेष्ठ है। परंतु तुझ जैसे का पोषण करना भी योग्य नहीं है कि जो अपने प्राण का रक्षण करके स्वामी के कार्य की उपेक्षा करते है।" ऐसे तिरस्कृत वचनों को सुनकर अपनी आत्मा को भ्रष्ट मानते हुए सेचनक हाथी ने बलात्कार ही हल्ल विहल्ल को अपनी पीठ पर से नीचे गिरा दिया। और स्वयं ने उस अंगारेवाली खाई में झंपापात कर दिया। तत्काल ही मृत्यूपरान्त वह गजेन्द्र पहली नारकी में उत्पन्न हो गया।
_ (गा. 290 से 300) यह देखकर दोनों कुमारों ने चिंतन किया, 'अपने को धिक्कार है! अपन ने यह क्या किया? इसमें तो वास्तव में अपन ही पशु तुल्य है। कारण कि पूज्य मातामह चेटक को इस प्रकार के संकट में डालकर महान विनाश का सर्जन करके भी अपन दुष्ट बुद्धि वाले अभी भी जीवित हैं ? साथ ही अपने आर्य बंधु के विपुल सैन्य का विनाश करने में जमानतदार के रूप में रहे हैं। और उनका वृथा ही विनाश में कारण बने। और फिर बंधु को अबंधुरूप में
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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