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________________ राजा का ऐसा प्रभाव जाने बिना ही देव तुल्य मेरे दश भाईयों को मैंने मरवा डाला। अब यदि युद्ध किया तो जो गति उनकी हुई, वैसी ही मेरी भी होगी। इसलिए युद्ध करना अब योग्य नहीं है। इसी प्रकार अब भ्रातृवध देखकर मेरा पीछे हठ करना भी उपयुक्त नहीं है। अतः अब मैं भी देवता की आराधना करके उसके प्रभाव से शत्रु को जीत लूँ।" दिव्य प्रभाव, दिव्य प्रभाव द्वारा ही बाधित होता है। “ऐसे उपाय का चिंतन करके हृदय में किसी देव का ध्यान करके श्रेणिक कुमार कुणिक अट्ठम भक्त में स्थित हुआ। पूर्व जन्म के तप से एवं इस जन्म का तप सम्मिलित होकर शक्रेन्द्र और चमरेन्द्र उसके प्रभाव से तत्काल ही वहाँ आए। उन्होंने कुणिक से कहा कि, हे भद्र! क्या इच्छा है? वह बोला- 'यदि आप प्रसन्न हुए हो तो चेटक राजा का हनन कर डालो।' शकेन्द्र ने उसे पुनः पुनः कहा कि- इसके अतिरिक्त अन्य कुछ भी मांग लो। यद्यपि चेटकराजा श्रावक होने से मेरे साधर्मिक हैं। इसलिए उसका हनन मैं कदापि नहीं करूंगा। तथापि मैं तेरे देह की रक्षा करूँगा कि जिससे उससे तू जितेगा नहीं। कुणिक ने एवमस्तु कहकर उस बात को स्वीकार किया। पश्चात् चमरेन्द्र ने महाशिला कंटक एवं रथमूसल नामक दो विजयदायक संग्राम करने को कहा। पहले महाशिलाकंटक नामक संग्राम में दुश्मन की ओर से महाशिला आवे तो वह विशाल शस्त्र से भी अधिक हो जाती है और दूसरे रथमूसल संग्राम में चारों ओर धूमने जैसा होता है, जिसमें चारों तरफ सर्वत्र संग्राम करने उठा हुआ शत्रुओं का सैन्य दृष्टिगत हो जाता है। पश्चात् सुरेन्द्र असुरेन्द्र और नरेन्द्र (कुणिक) ने मिलकर चेटक राजा के सैन्य के सैन्य के साथ युद्ध प्रारंभ किया। उस समय नागरथी का पौत्र वरूण, जो कि श्रावक के द्वादश व्रत का पालक, सम्यग्दृष्टि और छठ छठ से भोजन करने वाला, संसार से विरक्त और राजाभियोगी छट्ठ के अंत में भी अट्ठम कर्ता था। उसकी चेटक राजा ने अत्यन्त प्रार्थना करके अर्थात् उसे रथमूसल नामक दुःसह संग्राम में सत्य प्रतिज्ञा लेकर सेनापति होकर युद्ध करने प्रवृत्त हुआ। वह युद्ध करने के लिए आक्षेप करता हुआ असह्य वेगवाले रथ द्वारा कुणिक के सेनापति के ऊपर चढ़ आया। रथ को आमने सामने करके वे दोनों युद्ध की इच्छा से मानो पृथ्वी पर सूर्य और चंद्र आए हों, वैसे एक दूसरे के समीप आ गए। कुणिक का सेनापति युद्ध का मांग करता हो वैसे वरूण के सामने स्थित होकर उसे वार कर वार कर ऐसा कहने लगा। उसके जवाब में वरुण बोला कि 298 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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