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"वे आपकी शरण में आए तो उनको न सौपों तो चले, परंतु उनके पास से रत्न लेकर मेरे स्वामी को अर्पित कर दो। चेटकराज बोले कि, “अरे दूत! राजा
और रंक का ऐसा समान धर्म है कि दूसरे के वित्त को देने का अन्य मनुष्य कभी भी सत्ता रखता नहीं है। फिर बलात्कार या समझाकर भी मैं उनके पास से ले सकूँ वैसा भी नहीं है, क्योंकि कि वे मेरे धर्म पात्र दोहित्र होने से दान देने योग्य है।" ऐसा उत्तर सुनकर दूत वहाँ से पुनः लौटकर चंपानगरी में आ गया और चेटकराजा कथित जवाब अपने स्वामी को कह सुनाया कि जो उनके क्रोध रूपी अग्नि में वायु के समान हो गया।
(गा. 202 से 212) कुणिक ने तत्काल ही चेटकर राजा पर चढ़ाई करने के लिए जय भंभा बजा दी। “महापराक्रमी वीर सिंह के समान अन्य के आक्षेप को सहन नहीं कर सकते।" भंभानाद श्रवण करके असामान्य तेजवाले कुणिक राजा के सैनिक सर्व प्रकार से सज्ज हो गये। काल आदि दस बलशाली कुमार (कुणिक के भाई) सर्व रीति से सज्ज होकर सैन्य के आगे हो गए। उन प्रत्येक कुमार के साथ तीन तीन हजार हाथी, उतने ही अश्व, उतने ही रथ और तीन कोटि पायदल का सैन्य तैयार हो गया। यह कुणिक का प्रभुत्व था। ऐसे विशाल सैन्य के साथ चंपापति चेटक के सन्मुख आया। उसके सैन्य के प्रयाण से पृथ्वी और सूर्य दोनों ढंक गये। राजा चेटक ने अपरिमित सैन्य से कुणिक के सामने तैयारी की। अठारह मुकटबद्ध राजा उसके चारों ओर घिर गये थे। इस प्रकार चेटक का सैन्य भी कुणिक के सैन्य के जितना ही था। चेटक राजा विशाला से चलकर अपने देश की सीमा पर आ डटा। सामने सैन्य आ मिलने पर अपने सैन्य में दुर्भद्य सागर व्यूह की रचना की। चंपापति कुणिक ने भी पूर्व के वचनानुसार अपने सैन्य द्वारा शत्रु सेना से अभेद्य गरुड़ व्यूह की रचना की। दोनों सेना की ध्वनि से आकाश और अंतरीक्ष को पूरित करते हजारों घोर सैन्य वाजिंत्र बजने लगे, एवं दोनों सेना में कीर्ति के स्तंभ के सदृश स्तब्ध करते और सेवकों द्वारा प्रचलित करे खर द्वारा शंखवादक धूमने लगे।
(गा. 2 13 से 225) प्रथम कुणिक के सैन्य नायक कालकुमार ने चेटकराजा की सेना के साथ में युद्ध करने की शुरूआत की। तब गजारुढ-गजारुढ़ से सवार सवार से
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)