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निकालकर सिर पर रखा एवं प्रेत जैसी विकृत आकृति करके स्वयं मानो कौशांबीपंति के कब्जे में आ गया हो एवं उससे छूटने के लिए उपाय करने की आकृति करके मूत्रोत्सर्ग करता हुआ वह मानो भूत लगा हो, ऐसा बताने लगा। यह देखकर यह कोई पिशाचक है ऐसा सोचकर राजा ने तुरंत कोस का निग्रह किया, तब महावत ने भी हाथी को आगे चलाया।
(गा. 232 से 240) चंडप्रद्योत राजा ने सुंदर उद्यान में जाकर कामदेव रूपी उन्मत्त हस्ति को उत्तेजित करने के लिए महा औषध रूपी गांधर्व गोष्ठी शुरु की। कौतुकी प्रद्योत राजा ने गांधर्व विद्या की नवीन कुशलता देखने के लिए वासवदत्ता और वत्सराज को भी वहाँ बुलाया। उस समय वत्सराज ने वासवदत्ता को कहा कि, 'हे शुभमुखी बाला! आज वेगवती हथिनी पर बैठकर पलायन कर जाने का समय आ गया है। यह सुनकर अज्जयिनीपति की दुहिता ने उदयन राजा की आज्ञा से तत्काल वेगवती हथिनी को सज्ज करके मंगवायी। जब हथिनी को तंग बांधने लगा तब उस हथिनी ने गर्जना की। यह सुनकर किसी अंध ज्योतिषी ने कहा कि 'तंग बांधते जिस हथिनी ने गर्जना की है, वह सौ योजन जाकर अपने प्राण त्याग कर देगी।' उदयन की आज्ञा से वसंत महावत ने हथिनी के दोनों पार्थ में चार उसके मूत्र के घड़े भी बांध दिये। तब वत्सराज, घोषवती वासवदत्ता कांचनमाला धाय और बसंत महावत ये पांचों व्यक्ति वेगवती हाथी पर आरुढ हुए। इतने में योगंधरायण ने आकर उदयन को हाथ से इशारा करके कहा कि, चले जाओ चले जाओ। पश्चात् वह चलता चलता बोला कि- “ये वासवदत्ता कांचनमाला वसंतक, घोषवती और वत्सराज वेगवती के उपर पर बैठकर जा रहे हैं। अत्यन्त वेग से हथिनी को चलाते हुए वत्सराज भी सर्व का ज्ञाता हो गया। गुप्त रूप से पलायन करके भी उसने क्षत्रियव्रत का खंडन नहीं किया।
(गा. 241 से 251) इस प्रकार पांच जनों के साथ उदयन के चले जाने के समाचार जानकर मानो पाशक्रीड़ा करता हो, वैसे प्रद्योत हाथ मलने लगा। पश्चात् महापराक्रमी उज्जयिनी पति ने शीघ्र ही अनलगिरि हाथी को सज्ज कराया उन पर महायोद्धाओं को बैठाकर उनको पकड़ कर वापिस लाने को रवाना किया। एक साथ पच्चीस योजन का उल्लंघन करके वह हाथी वेगवती हथिनी के समीप आ पहुँचा। उदयन
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)