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आर्हती दीक्षा अंगीकार की। प्रिया की भांति भूमि का पालन करते हुए प्रियमित्र राजा के अनुक्रम से चौदह महारत्न उत्पन्न हुए। चक्र के मार्ग का अनुसरण करते हुए उन्होंने षट्खंड पर विजय हेतु प्रस्थान किया।
(गा. 182 से 189) सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख मागधतीर्थ में आए। वहाँ अष्टम तप करके चतुरंग सैन्य साहित पडाव डाला। अष्टम तप पूर्ण करके रथारूढ़ होकर थोड़ी दूर जाकर धनुष हाथ में लिया। पश्चात् इन महाभुज ने मागधतीर्थ कुमार देव को उद्देश कर स्वनाम अंकित गुरुड़ जैसा एक बाण प्रक्षेप किया। वह बाण आकाश में बारह योजन पर्यन्त जाकर मागधदेव के आगे उत्पात वज्र की भांति गिरा। उस समय मृत्यु को चाहने वाले किसने यह बाण फेंका? ऐसा सोचकर मागध देव ने कोप से उठकर वह बाण हाथ में लिया। तब उस पर चक्रवर्ती के नाम के अक्षरों की श्रेणी देखकर वह क्षणमात्र में ही शांत हो गया। फिर तो अनेकों उपहार लेकर वह प्रियमित्र चक्री के पास आया एवं मैं आपका आज्ञांकित हूँ" ऐसा बोलता हुआ नभमंडल में ही खड़ा रहा। उपायों के ज्ञाता उसने विविध उपहारों से चक्रवर्ती की पूजा की। चक्रवर्ती ने उसका सत्कार करके उसको विदा किया एवं स्वयं ने वापिस लौट कर पारणा किया। साथ ही उस मागधदेव के निमित्त से वहाँ अट्ठाई महोत्सव किया। तब कर्क राशि के सूर्य की तरह चक्रवर्ती दक्षिण दिशा की ओर चल दिये। वहाँ वरदाम नामक देव को भी पूर्व की भांति साध लिया। वहाँ से पश्चिम की ओर जाकर प्रभासपति को साधा। पश्चात सिंधु नदी के समीप गये। वहां पर जिन्होंने अष्ठम तप किया, ऐसे चक्रवर्ती के समक्ष सिंधुदेवी ने प्रत्यक्ष होकर दो दिव्य रत्नमय भद्रासन और दिव्य आभूषण दिये। उस देवी को विदा करके चक्र के मार्ग का अनुसरण करते हुए चक्रवर्ती वैताढ्य गिरि के पास आए। वहाँ भी अट्ठम तप करके वैताढ्याद्री नाम के देव को साथ लिया। पश्चात् तमिस्रा गुफा के समीप में जाकर अष्टम तप किया। तब वहाँ स्थित कृतमाल देव ने स्त्रीरत्न के योग्य अन्य आभूषण दिये। सेनापति ने चक्री की आज्ञा से चर्मरत्न द्वारा सिंधु नदी पार करके लीलामात्र में ही उसका प्रथम निष्कूट साध लिया। पुनः लौटकर चक्री की आज्ञा से अष्टम तप करके दंडरत्न के घात से उन्होंने तमिस्रा का द्वार उघाड़ा। तत्पश्चात् चक्रवर्ती गजरत्न पर आरुढ़ होकर उसके दक्षिण कुंभस्थल पर प्रकाश के लिए सूर्यमंडल जैसे मंडल बनाते हुए चक्रवर्ती चक्र का अनुसरण करके चल दिये। फिर उन्मग्ना 14
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)