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________________ उज्जयिनी के राजा ! इसी कारण से आपका एकान्त हितेच्छु होने से मैं आपको ज्ञात कराता हूँ कि आपके साथी सर्व राजाओं को श्रेणिक राजा ने फोड़ दिया है । उनको स्वाधीन करने के लिए प्रचुर सोनामोहरें भेजी हैं। जिससे वे लोग अवसर देखकर तुमको बांधकर मेरे पिता को सौंप देंगे। उसकी जानकारी के लिए उनके वासगृह में उन्होंने सोना मोहरें गाड़ रखी होगी वह खुदवा कर देख लेना। क्योंकि दीपक होने पर अग्नि को कौन देखें ?” तथा प्रकार के पत्र का वांचन करके उसने एक राजा के आवास के नीचे खुदवाया तो वहाँ से सौनेया निकली। तब प्रद्योत राजा ने वहाँ से पड़ाव उठाया और उज्जयिनी की ओर चल दिया । उसके भाग जाने से सर्व सैन्य सागर के समान क्षुभित हो गया । मगधाधिपति ने उसमें से घोड़े आदि जितना लिया जा सके उतना ले लिया । जीव नासिका पर चढ़ा कर प्रद्योत राजा तो वायुवेग से अश्व से वह जल्दी जल्दी अपनी नगरी में घुस गया। उसके साथ जो मुकुटबंध राजा और अन्य महारथी वे भी कौवें की भांति भाग गये। क्योंकि नायक बिना सैन्य हनन किया हुआ ही होता है । केश बांधने का भी अवकाश न मिलने से केश और साथ ही छत्र बिना के मस्तक से भागते हुए वह प्रद्योत राजा के पीछे उज्जयिनी में आ पहुँचें । पश्चात् परस्पर बातचीत होने पर 'यह सब अभयकुमार की माया है, हम सब टूटे नहीं है' ऐसा कहकर उन्होंने सौगन्ध खाकर प्रद्योत राजा को विश्वास दिलाया। (गा. 121 से 131) एकदा उज्जयिनी के राजा प्रद्योत ने क्रोध पूर्वक सभा के बीच कहा कि जो कोई अभयकुमार को बांधकर लाकर मुझे सौंप देगा, उसे मैं प्रसन्न करूंगा । उस समय कोई गणिका हाथ ऊंचा करके बोली कि यह काम करने में मैं समर्थ हूँ ।" यह सुनकर प्रद्योत राजा ने उसे आज्ञा दी कि तू यह कार्य कर तुझे जितना चाहिये उतना द्रव्य आदि की सहायता मैं करूंगा । उसने विचार किया कि, 'अभयकुमार अन्य किसी उपायों से पकड़ा नहीं जा सकेगा इसलिए धर्म का छल करके मैं मेरा कार्य सिद्ध करूं। ऐसा विचार करके उसने दो युवा स्त्रियों की मांग की। राजा ने उसे उन दो स्त्रियों के साथ साथ प्रचुर धन भी दिया। उन तीनो स्त्रियों ने किसी साध्वी की आदरपूर्वक उपासना की । ये अत्यन्त बुद्धिशाली होने से अल्प समय में तो बहुश्रुत हो गई मानों तीन जगत् को छलने के लिए माया की तीन मूर्ति हों, ऐसी वे तीनों ही श्रेणिक के नगर में आ गई। (गा. 132 से 140 ) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व ) 251
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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