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करने लगा, धन्य है इस शालिभद्र को, साथ ही धन्य हूँ मैं भी कि मेरे राज्य में ऐसे धनाढ्य पुरुष भी वसते हैं। पश्चात् राजाओं में अग्रणी श्रेणिक राजा ने परिवार सहित भोजन किया। भोजन के पश्चात् विचित्र अलंकारों एवं वस्त्रों से अर्चित होकर राजा राजमहल में गया।
__(गा. 114 से 120) __इधर शालिभद्र संसार से मुक्त होने का विचार कर रहे थे, इतने में उसके धर्ममित्र ने आकर विज्ञप्ति की कि-'चतुर्ज्ञानधारी और सुर असुरों से नमस्कृत मानों मूर्तिमान धर्म हों ऐसे धर्मघोष नाम के मुनि उद्यान में पधारें हैं' यह श्रवण करके शालिभद्र हर्ष से रथ में बैठकर वहाँ आया। आचार्य भगवन्त को तथा अन्य साधुओं को वंदन करके उनके सम्मुख बैठा। सूरि भगवन्त के देशना देने के पश्चात् उसने पूछा कि, 'हे भगवन्! कौनसे कर्म से राजा स्वामी न हों ? मुनि ने फरमाया, कि-'जो दीक्षा ग्रहण करता है, वह इस जगत् का भी स्वामी होता है। शालिभद्र ने कहा कि, यदि ऐसा है तो मैं घर जाकर मेरी माता से अनुमति लेकर दीक्षा ग्रहण करूंगा।" सरि प्रवर ने कहा कि “धर्म कार्य में प्रमाद मत करो।" शालिभद्र ने घर जाकर माता को नमस्कार करके कहा कि- “हे माता! आज श्री धर्मघोषसूरि के मुख कमल से मैंने धर्म श्रवण किया, वह धर्म इस संसार के सर्व दुःख से छूटने के उपाय रूप है।' भद्रा बोली कि- 'वत्स! बहुत अच्छा किया, क्योंकि तू ऐसे धर्मी पिता का पुत्र है' इस प्रकार हर्ष से शालिभद्र की प्रशंसा की। तब शालिभद्र ने कहा कि- 'माता! यदि ऐसा ही है तो प्रसन्न होकर मुझे अनुमति दो, मैं व्रत अंगीकार करूंगा। क्योंकि मैं उन पिता का पुत्र हूँ। भद्रा बोली 'वत्स! तेरा व्रत लेने का उद्यम युक्त है। परंतु उसमें तो निरन्तर ही लोहे के चने चबाने का है। तू प्रकृति से ही सुकोमल है और दिव्य भोगों से लालित है, इसलिए विशाल रथ को छोटे छोटे बछडे की तरह तू किस प्रकार व्रत के भार को वहन कर सकेगा?' शालिभद्र बोले- 'हे माता! भोग लालित जो पुरुष व्रत के कष्टों को सहन नहीं करते, उनको कायर समझना किन्तु सभी कोई वैसे नहीं होते।' भद्रा बोली – हे वत्स! यदि तेरा ऐसा ही विचार है तो तू धीरे धीरे थोड़ा थोड़ा भोगों का त्याग करके मनुष्य की मलिनता की गंध को सहन करने का अभ्यास कर पश्चात् व्रत ग्रहण करना।' शालिभद्र ने उनके वचनों को शीघ्र ही मान्य किया और उस दिन से प्रतिदिन एक एक स्त्री का एवं शय्या का त्याग करने लगा।
(गा. 121 से 135)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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