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यहाँ से विदा हो तब हमें इसकी जानकारी देना।" प्रजापति राजा ने कितनेक दिन तक दूत को वहाँ रोककर सत्कार करके विदा किया। जब वह वहाँ से चला तो दोनों कुमार आधे रास्ते में आड़े आ गए और अपने व्यक्तियों द्वारा उसकी अच्छी तरह पिटाई कराई। उस समय जो उसके सहायक सुभट साथ में थे, वे सब काकपक्षी की तरह वहाँ से तत्काल ही पलायन हो गए। उसकी जानकारी प्रजापति राजा को मिलते ही उन्होंने चंडवेग को वापिस बुलाकर और भी अधिक सत्कार सन्मान करके कहा कि, हे चंडवेग! इन मेरे कुमारों का अविनय अपने स्वामी अश्वग्रीव को मत कहना। कारण कि अज्ञान से हुए दुर्विनय पर महाशय पुरुष कोप नहीं करते। तब दूत ठीक है 'ऐसा कहकर वहाँ से चल दिया। परंतु उसके साथ जो सुभट थे, उन्होंने आगे जाकर अश्वग्रीव राजा को सर्व वृत्तांत निवेदन कर दिया। अश्वग्रीव ने सब बात जान ली है, ऐसा समझ कर असत्य बोलने में भयभीत चंडवेग ने भी अपने पर जो उपद्रव हुआ था, उसे यथार्थ रूप से कह सुनाया।
(गा. 121 से 135) तत्पश्चात् अश्वग्रीव राजा ने दूसरे व्यक्तियों को समझा बुझाकर प्रजापति राजा के पास भेजकर कहलाया कि 'तुम तुंगगिरि जाकर सिंह से शाली के क्षेत्र की रक्षा करो। ऐसी अश्वग्रीव राजा की आज्ञा है।' यह सुनकर प्रजापति राजा ने अपने कुमारों से कहा कि 'तुमने अपने स्वामी अश्वग्रीव को कुपित किया है, इससे उन्होंने बारी के बिना भी सिंह से शाली के क्षेत्र की रक्षा करने की मुझे आज्ञा दी है।' इस प्रकार कहकर प्रजापति राजा ने वहाँ जाने की तैयारी थी। तब दोनों कुमारों ने राजा को रोक कर सिंह से युद्ध में कौतुकी होकर स्वयं ही शंखपुर की ओर चल दिये। त्रिपृष्ठ ने वहाँ पहुँचने के पश्चात् किसी समय उस शालीक्षेत्र के रक्षक गोपालकों को पूछा- कि ‘अन्य राजा जब यहाँ आते हैं, तब वे सिंह से रक्षा किस प्रकार करते हैं ? और उस समय वे कहाँ रहते है ? गोपालक बोले- अन्य राजा प्रत्येक वर्ष बारी-बारी से यहाँ आते हैं, जब तक शाली क्षेत्र की लावणी (कटाई) होती है, तब तक वे चतुरंगी सेना से शालीक्षेत्र के चारों ओर किला बनाकर उसकी रक्षा करते हैं। तब त्रिपृष्ठ ने कहा कि इतनी देर तक यहाँ व्यर्थ क्यों बैठा जाय? मुझे सिंह बताओ जिससे मैं अकेला ही उसे मार डालूँ। पश्चात् उन्होंने तुंगगिरि की गुफा में रहे हुए सिंह को बताया।
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)