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प्रश्नोत्तर होने के पश्चात् प्रभु ने सर्वभाषानुसारी वाणी द्वारा पाप का नाश करने वाली धर्म देशना दी।
(गा. 5 4 से 58) इतने में कुष्ट रोग से जिसकी काया गल गई है, ऐसा कोई पुरुष वहाँ आया और वह प्रभु को प्रणाम करके हड़काये श्वान के समान प्रभु के पास जमीन के ऊपर बैठा। पश्चात् चंदन के सदृश अपने मवाद से प्रभु के चरणों को बारम्बार चर्चित करने लगा। यह देखकर श्रेणिक राजा कोपायमान होते हुए विचारने लगे कि –'यह महापापी जगत्स्वामी की इस प्रकार महाआशातना कर रहा है, इसलिए जब यह उठेगा, तब यह अवश्य ही वध करने योग्य है।' इतने में प्रभु को छींक आई, तो वह कुष्टी बोला कि- 'मृत्यु को प्राप्त करो।' पश्चात् राजा श्रेणिक को छींक आई, तो वह बोला कि 'खूब जीओ।' थोड़ी देर में अभयकुमार को छींक आई तो वह बोला कि 'जीओ या मरो' बाद में कालसौरिक को छींक आई तो वह बोला कि 'जीव भी मत और मर भी मत।' प्रभु के लिए मृत्यु पाओ ऐसा सुनकर क्रोधित हुए श्रेणिक राजा ने अपने सुभटों को आज्ञा दी कि- 'जब यह कुष्टी यहाँ से उठे तब उसे पकड़ लेना।' देशना समाप्त होने पर वह कुष्टी प्रभु को नमन करके उठा, उस समय किरात लोग जैसे सूअर को घेर लेते हैं, वैसे ही श्रेणिक के सुभटों ने उसे घेर लिया। परंतु उनके देखते देखते ही क्षणभर में वह दिव्य रूप धारण करके सूर्य के बिंब को भी निस्तेज करता हुआ आकाश में उड़ गया। सुभटों ने यह बात श्रेणिक महाराज को कही। तब राजा ने विस्मित होकर विज्ञप्ति की कि, 'हे प्रभु! वह कुष्टी कौन था? प्रभु ने कहा कि – 'वह देव था। राजा ने पुनः सर्वज्ञ प्रभु को पूछा कि - 'तब वह कुष्टी किस लिए बना?' प्रभु ने उस हकीकत का वर्णन किया कि
(गा. 59 से 68) 'इस विश्व में प्रख्यात ऐसी कौशांबी नाम की नगरी में शतानीक नाम का राजा राज्य करता था। उस नगरी में सेडुक नामक एक ब्राह्मण रहता था। वह हमेशा का दारिद्रय की सीमा एवं मूर्खता की अवधि था। किसी समय उसकी पनि सगर्भा हुई, इससे उस ब्राह्मणी ने सेडुक से कहा कि, 'भट्ट जी! मेरी प्रसूति के लिए घी ले आओ। उसके बिना मेरे से व्यथा सहन नहीं होगी। वह बोला
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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