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नरकावास में निवास हो, वैसा अकार्य का मैंने आचरण किया है। और फिर मैंने मेरी आत्मा को ही नरक का अतिथि ही नहीं किया, परंतु असत् मार्ग के उपदेश से इन सब लोगों की आत्मा को भी नरक के अतिथि बना दिये। भवतु! अब यह तो बहुत हो गया। अब तो लोग पुनः सन्मार्गगामी हों। ऐसा विचार करके उसने सर्व शिष्यों को बुलाकर कहा कि, 'हे शिष्यों! सुनों मैं न अर्हन्त हूँ
और न ही केवली हूँ, मैं तो मंखली का पुत्र और श्री वीर प्रभु का शिष्य गोशाला हूँ। आश्रय का ही भक्षण कर्ता अग्नि की भांति मैं गुरु प्रत्यनीक हूँ। मैंन इतने समय तक दंभ से मेरी आत्मा को और लोगों का ठगा है। मेरा अपनी ही तेजोलेश्या से दहन होने से मैं छद्मस्थ रूप से ही मृत्यु को प्राप्त करूंगा। इसलिए मेरी मृत्यु के पश्चात् मेरे मृत शरीर के चरण को रज्जु से बांधकर मुझे पूरे नगर में घसीटना। मृत श्वान की तरह मेरे शरीर को खींचते हुए मेरे मुँह पर थूकना और सम्पूर्ण नगरी में चौराहे, तिराहे, चौक और गलियों गलियों में ऐसी आघोषणा कराना कि, लोगों को दंभ से ठगनेवाला, मुनियों का घातक, जिन नहीं (छद्मस्थ), दोषों का ही निधान, गुरु का द्रोही एवं गुरु का ही विनाश का इच्छुक मंखली का पुत्र यह गोशाला है। यह जिन नहीं है, जिनेश्वर तो भगवान्, सर्वज्ञ, करुणानिधि, हितोपदेष्टा श्री वीरप्रभु है। ऐसा करने की सौगन्ध देकर वह गोशाला अत्यन्त व्यथा से पीड़ित होकर मरण को प्राप्त हुआ। तब उसके शिष्यों ने लज्जा से उस कुलाल (कुंभार) की शाला के द्वार बंद करके सौगन्ध से मुक्त होने के लिए अंदर श्रावस्ती को चित्रित करके गोशलाा के शव को उसमें उसकी कही आघोषणा करके घसीटा। फिर उन शिष्यों ने गोशाला के कलेवर को मकान से बाहर निकला और उसके उपासकों ने विपुल समृद्धि से उसका अग्निसंस्कार महोत्सव किया।
(गा. 443 से 470) श्री वीरप्रभु वहाँ से विहार करके मेंढक ग्राम में पधारे वहाँ कोष्टक नाम के चैत्य में समवसरे। वहाँ गौतम ने प्रभु को पूछा कि, “स्वामी! गोशाला ने कौन सी गति प्राप्त की ? प्रभु ने फरमाया कि 'अच्युत देवलोक में गया, गौतम ने पुनः पूछा कि – ‘महाराज! ऐसा उन्मार्गी और अकार्य करने वाला दुरात्मा गोशाला देव कैसे बना? इसका मुझे आश्चर्य होता है।' तब प्रभु ने फरमाया कि – “हे गौतम! जो अवसान के समय भी स्वयं के दुष्ट कृत्य की निंदा करता है, उससे देवत्व दूर नहीं है। गोशाला ने भी उस प्रकार किया था। गौतम ने पुनः पूछा, 'हे
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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