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मर गया होता वह याद कर। उनके ये वचन सुनकर गड्ढे में पड़े सिंह के समान असमर्थ बना गोशाला उनका कुछ भी न कर सकने पर भी क्रोध से उछलने लगा। पश्चात् दीर्ध और उष्ण निःश्वास लेता, दाढ़ और केशों को खींचता हुआ पैरों से पृथ्वी को ताड़न करता हुआ और 'अरे मैं मारा गया' ऐसा बारबार बोलता हुआ वह प्रभु की पर्षदा से बाहर निकल गया। और लोगों से चोर की भांति तिरस्कृत होता हुआ वह मुश्किल से धीरे धीरे हालाहला कुंभकारी की दुकान पर पहुँचा। उसके जाने के पश्चात् प्रभु ने मुनियों से कहा, “गोशाला ने जो तेजोलेश्या मेरा वध करने के लिए मुझ पर फेंकी थी, वह अपनी उग्रशक्ति से वत्स, अच्छ, कुत्स, मगध, मंग, वालव, कोशल पाड, लाट, वज़ि, मालि मलय वाधक, अंग, काशी और सह्य गिरि के उत्तर प्रदेश – इस प्रकार सोलह देशों को जलाने में शक्तिमान् थी। गोशाला ने इस तेजोलेश्या को अत्यंत उग्र तप करके साधी थी।" यह सुनकर गौतम आदि मुनि परम विस्मय को प्राप्त हुए कि, “अहो! सत्पुरुष शत्रु पर भी मात्सर्य भाव नहीं रखते।"
(गा. 391 से 427) इधर अपनी तेजोलेश्या से दहन होने पर गोशाला हाथ में मद्य (शराब) का पात्र लेकर मद्य पीने लगा। पश्चात् उससे मदोन्मत्त बनकर गोशाला नाचने
और गाने लगा। एवं हालाहला कुंभकारी को बार-बार अंजली जोड़कर नमन करने लगा। पात्र के लिए गूंथी हुई मृत्तिका (मिट्टी) को ले लेकर शरीर पर चुपड़ने लगा। तथा घर की नाली में लोट कर बार बार उस नाली का जल पीने लगा। साथ ही असंबद्ध वचन जैसे तैसे बोलने लगा। शोक सहित शिष्यों से सेवित वह गोशाला इस प्रकार अपने दिन निर्गमन करने लगा।
(गा. 428 से 430) इसी समय पुत्राल नामक गोशाला का एक उपासक था, वह पूर्वरात्रि और अपर रात्रि में धर्मजागरण करके विचार करने लगा कि, 'तृणगोपालिका का संस्थान कैसा होगा? वह मैं जानता नहीं, अतः मैं अपने सर्वज्ञ गुरु गोशाला के पास जाकर पूछ लूं।' ऐसा विचार करके वह अमूल्य आभूषण धारण करके गोशाला के पास आया। वहाँ हालाहला कुंभकारी की दुकान पर गोशाला के स्थविर शिष्यों ने उसे जल्दी-जल्दी आते हुए देखा। तत्काल ही वे बोले कि'अरे पुत्राल! आज पिछली रात में तुझे तृणगोपालिका के संस्थान संबंधित
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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