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यह चुलनीपिता श्रावक महाव्रतधारी होंगे या नहीं?'' प्रभु ने फरमाया कि, “वह इस भव में यति धर्म को प्राप्त नहीं करेगा, वरन् गृहस्थ धर्म प्रीतिपूर्वक पालकर मृत्यु के पश्चात् वह सौधर्म देवलोक में देव होगा। वहाँ अरुणाभ नामक विमान में चार पल्योपम की आयुष्य भोग कर वहाँ से च्यवकर महाविदेह क्षेत्र में उत्पन्न होकर निर्वाण को प्राप्त करेगा।"
(गा. 276 से 293) उस ही नगर में सुरादेव नामका गृहस्थ रहता था। उसके धन्या नाम की प्रिया थी। उसके पास भी कामदेव के समान विपुल धन था। उसने भी कामदेव के समान प्रभु के पास जाकर श्रावक के व्रत ग्रहण किये और धर्म से धन्य उसकी धन्या नाम की उसकी पत्नि ने भी श्रावक व्रत ग्रहण किया।
(गा. 294 से 298) श्री वीर प्रभु वहाँ से विहार करके आलंभिका नगरी में पधारे। वहाँ शंखवन नाम के उद्यान में प्रभु समवसरे। उस नगरी में चुल्लशतक नाम का गृहस्थ रहता था। वह भी कामदेव के समान ऋद्धिवान् था। उसके बहुला नाम की स्त्री थी। वह भी कामदेव की भांति श्री वीरप्रभु के चरणों में गया और अपनी बहुला स्त्री के साथ उसने गृहिधर्म और अन्य नियम भी ग्रहण किए।
(गा. 299 से 301) किसी समय विहार करते करते प्रभु कंपिल्यपुर में आये एवं सहसाम्रवन नामक उद्यान में समवसरे। वहाँ कामदेव के समान धनवान् कुंडकोलिक नाम का गृहस्थ रहता था। उसके शीलद्वारा अलंकृत पुष्पा नाम की स्त्री थी। उसने भी पुष्पा के साथ कामदेव की तरह प्रभु के पास जाकर व्रत और अन्य नियम ग्रहण किये।
(गा. 302 से 304) पोलाशपुर नाम के नगर में शब्दालपुत्र नामका एक कुंभार रहता था। वह गोशालक का उपासक था। उसके अग्निमित्रा नामकी स्त्री थी। उसके एक कोटी सौनैया भंडार में, एक कोटि ब्याज में और एक कोटि व्यापार में थे। इस प्रकार एक गायों का गोकुल था। पोलाशपुर के बाहर उस कुंभार की पांच सौ दुकाने उसके मिट्टी के बर्तन बेचने की थी। किसी समय अशोक वन में किसी देवता ने
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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