________________
वरदान दिया। इससे उस चित्रकार ने क्रुद्धित होकर विचार किया कि 'इस दुष्ट राजा ने मुझ निरपराधी की ऐसी दुर्दशा की, इसलिए किसी भी उपाय से मैं इसका बदला लूंगा।' “बुद्धिमान पुरुष जो पराक्रम से असाध्य हो, उसे बुद्धि से साध्य कर लेते है ।" ऐसा विचार करके उसने एक पट्टिका तपर उस विश्वभूषण मृगावती को अनेक आभूषणों सहित आलेखित की । पश्चात् स्त्रियों के लोलुपी एवं प्रचंड ऐसे चंउप्रद्योत राजा के पास जाकर वह मनोहर चित्र बताया । उसे देखकर चंडप्रद्योत ने कहा कि, "हे उत्तम चित्रकार ! तेर चित्रकौशल्य वास्तव में विधाता जैसा हील है, ऐसा मैं मानता हूँ। ऐसा स्वरूप इस मानवलोक में पूर्व में कभी भी दृष्टिगत नहीं हुआ। साथ ही स्वर्ग में भी ऐसा स्वरूप हो ऐसा श्रवणगोचर नहीं हुआ। इस उपरान्त भी अन्य नकल के बिना इसे किस प्रकार बनाया गया? हे चित्रकार! ऐसी स्त्री कहाँ है ? तू हकीकत कह तो शीघ्र उसे पकड़ लाऊँ। क्योंकि ऐसी स्त्री किसी भी स्थान पर हो तो वह मेरे ही लायक है ।"
राजा के ऐसे वचन सुनकर 'अब मेरा मनोरथ पूर्ण होगा।' ऐसा सोचकर हर्षित होकर उसने राजा से कहा कि, 'हे राजा! कौशांबी नगरी में शतानीक नामक राजा है। पूर्णमृगांक जैसे मुखवाली उसकी मृगावती नामक यह मृगाक्षी उस सिंह जैसे पराक्रमी राजा की पट्टरानी है । उसके यथार्थ स्वरूप को तो आलेखन करने में विश्वकर्मा भी समर्थ नहीं है, मैंने तो इसमें उसका किंचित्मात्र रूप ही चित्रित किया है। क्योंकि उसका वास्तविक रूप तो वचन से भी दूर है ।' चंडप्रद्योत ने कहा कि, ‘मृग के देखते हुए सिंह जैसे मृगली को ग्रहण करता है, वैसे ही मैं शतानीक राजा को देखते हुए इस मृगावती को ग्रहण कर लूंगा। तथापि राजनीति के अनुसार पहले उसकी मांग करने के लिए दूत भेजना योग्य है, कि जिससे मेरी आज्ञा मान्य करे, तो उसे कुछ भी अनर्थ न हो ।' ऐसा विचार करके चंडप्रद्योत ने वज्रजंघ नामक दूत को समझाकर शतानीक राजा के पास भेजा। उस दूत ने शतानीक राजा के पास आकर कहा- 'हे शतानीक राजा! चंडप्रद्योत राजा तुमको आज्ञा देता है कि तूने दैवयोग से मृगावतीदेवी को प्राप्त किया है। परंतु वह स्त्रीरत्न तो मेरे योग्य है। तू कौन मात्र है ? इसलिए यदि राज्य और प्राण प्रिय हो तो उसे शीघ्र ही यहाँ भेज दे।" दूत के ऐसे वचन सुन शतानिक राजा बोला कि - अरे अधम दूत ! तेरे मुख से तू इस प्रकार की अनाचार युक्त बात बोलता है, परंतु जा दूतपने को कारण आज तुझे मारता नहीं हूँ। जो स्त्री मेरे आधीन है, उसके लिए भी तेरे पापी राजा का ऐसा आचार
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
186