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जिस चोर की ऐसी अमानुषी शक्ति है, वह अंतःपुर में भी प्रवेश कर सकता है । अभयकुमार बोला- 'हे देव! मैं थोड़े समय में जैसे उसे बताने में जमानती होंऊ वैसे उस चोर को पकड़कर आपको सौंप दूंगा।' ऐसी प्रतिज्ञा करके अभयकुमार उस दिन से ही उस चोर को ढूंढने के लिए सम्पूर्ण नगर में रातदिन घूमने लगा।
(गा. 70 से 80 )
एक वक्त प्राज्ञ अभयकुमार नगर में घूमता घूमता किसी स्थान पर नगरजन संगीत (नाटक) करा रहे थे, वहाँ गया । नगरजनों ने उसे आसन दिया । उस पर बैठकर अभयकुमार बोला- 'हे नगरजनों! जब तक संगीत करने वाले नट नहीं आते, तब तक मैं एक कहानी कहता हूँ, सुनो- बसंतपुर में जीर्ण श्रेष्ठी नामका एक अति निर्धन सेठ रहता था । उसकी एक कन्या थी । वह वर के लिए बड़ी उम्र की हो गई थी । उत्तम वर प्राप्त करने के लिए कामदेव की पूजा करने के लिए यह बाला किसी उद्यान में से प्रतिदिन चोरी करके पुष्प चूंट कर लाती थी। एक बार 'मैं इस पुष्पों के चोर को पकहूँ' ऐसा सोचकर वह उद्यानपालक शिकारी की तरह स्थिर होकर वहाँ छुप गया । वह बाला पूर्व की भांति विश्वास से चुपचाप पुष्प चूंटने लगी। उसे अति रूपवती देखकर उद्यानपालक कामातुर हो गया। इससे शीघ्र ही उसे कांपते कांपते पकड़ लिया। सद्य पुष्प की चोरी का कोप भूल कर वह बोला कि हे उत्तमवर्णवाली ! मैं तेरे साथ रतिक्रीड़ा करना चाहता हूँ। इसलिए मेरे साथ क्रीड़ा कर । इसके सिवा मैं तुझे छोडूंगा नहीं । मैंने तुझे पुष्पों से ही खरीद ली है । वह बोली 'अरे माली ! मुझे तू कर से स्पर्श करना मत । मैं कुंवारी हूँ, इसलिए अद्यापि पुरुष के स्पर्श के योग्य नहीं हूँ, आरामिक बोला कि - ऐसा है तो हे बाला! तू यह कबूल कर कि विवाह के पश्चात् इस शरीर को प्रथम मेरे संभोग का पात्र करना । उसने वैसा करना स्वीकार किया । तब उद्यानपालज ने उसे छोड़ दी। वह भी अपनी कौमारवय को अक्षत रखकर अपने घर आ गई। किसी समय कोई उत्तम पति के साथ वह परणी । रात्रि में जब वह वासगृह में गई तब उसने पति से कहा कि, 'हे आर्यपुत्र! मैंने एक माली से पहले प्रतिज्ञा की है कि विवाह के पश्चात् पहले उसके साथ संग करना।' मैं उसके साथ वचन से बंधी हुई हूँ। इसलिए मुझे आज्ञा दो कि मैं उसके पास जा आऊं । एक बार उसके पास जा आने के पश्चात् तो मैं सदा आपके ही आधीन ही रहूँगी । उसके ऐसे वचन
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित ( दशम पर्व )
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