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सुज्येष्ठा का रूप आलेखन करके वह क्रूर तापसी त्वरा से राजगृह नगर में आई एवं राजा श्रेणिक को वह चित्र बताया। नेत्ररूप मृग की मृगजाल रूप चित्र-लिखित रमणी को देखकर राजगृहपति श्रेणिक अनुराग से उसका वर्णन करने लगा- “अहा! इस बाला का क्या मनोहर रूप है। मयूर का कलाप तो उसके केश पाश के दासत्व को पाता है, उसका मनोहर नेत्रवाला मुख जिसमें भ्रमर लीन हो वैसा कमल जैसा है, उसका कंडा शंख का अवलम्बन करता है, स्तनभूषित उरस्थल क्रीड़ा करते काकपक्षी वाले सरोवर के तुल्य है, नितंब धनुर्धर कामदेव के खेलने योग्य भूमि जैसे सविस्तर हैं। साथल अनुक्रम से वर्तुल होने से गजबंध के विलास को हरने वाले हैं। जंघा कमल के जैसी सरल और कोमल है और सरल जंघा वाले चरण ऊँचे नाल वाले कमल जैसे हैं। अहा! इस मृगाक्षी का अद्वैत सौंदर्य, उज्जवल लावण्य और दूसरा सब भी अत्यधिक रम्य हैं।" इस प्रकार वर्णन करने के पश्चात् उस पर मोहित हुए श्रेणिक ने तापसी को पूछा कि, हे महाभागे! स्त्रियों में श्रेष्ठ ऐसी इस स्त्री का चित्र आपने अपनी बुद्धि से आलेखित किया है या कोई स्त्री के रूप दर्शन से आलेखित किया है?"
(गा. 206 से 213) तापसी बोली-"जैसा रूप मैंने देखा वैसा यथाशक्ति आलेखित किया है। हे राजा! जैसा इस चित्र में है, वैसा कभी दर्पण में हो सकता है ?' प्रेम से मोहित हुआ राजा उस चित्रस्थ रूप को मानो आलिंगन करने या चुंबन करने को इच्छुक हो वैसा दिखाई देने लगा। पश्चात् वह बोलाकि, “हे भद्रे! मुक्तावली के समान यह बाला किस वंश में उत्पन्न हुई है ? चंद्रलेखा के तुल्य यह फिलहाल किस नगरी को अलंकृत कर रही है ? क्षीरसागर को लक्ष्मी की तरह किस धन्य पुरुष की यह पुत्री है ? किन पवित्र अक्षरों में इसका नाम आया है ? सरस्वती ने किस किस कला से उस पर अनुग्रह किया है ? और किसी पुरुष के करों ने उसके कर को चुंबित किया है या नहीं? “तापसी बोली-“हे राजन! वैशाली नगरी के अधिपति और हैहयवंश में उत्पन्न हुए चेटक राजा की यह कुमारी है, यह सर्व कला का भंडार है और सुज्येष्टा उसका नाम है। गुण और रूप की योग्यता से तुम ही इसे वरने के योग्य होने पर भी यदि इसका अन्य पति होगा तो आप तीसरे पुरुषार्थ (काम) से ठगे जाओगे। तब राजा श्रेणिक ने उस
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त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)