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________________ हुआ अत्यन्त लघु शरीर करके प्रभु के दोनों चरणों के बीच कुंथुए के जैसे छिप गया। उस समय वज्र प्रभु के चरण कमल से चार अंगुल दूर था। इतने में तो सर्प को वादी पकड़े वैसे इंद्र ने वज्र को मुट्ठी में ले लिया। पश्चात् प्रभु को प्रदक्षिणा पूर्वक वंदना करके इंद्र अंजलीबद्ध होकर भक्ति सभर वाणी से इस प्रकार बोले कि- “हे नाथ! यह चमरेन्द्र उद्धत होकर मुझे उपद्रव करने के लिए आपके चरणकमल के प्रभाव से मेरे देवलोक तक आया था, यह मेरे जानने में आया नहीं था, इससे अज्ञानता से मैंने यह वज्र उस पर छोड़ा था। उसके पश्चात अवधिज्ञान द्वारा उसे आपके चरणकमल में लीन हुआ मैंने जाना। इसलिए मेरा अपराध क्षमा करे। इस प्रकार कहकर शक्रेन्द्र ने ईशानकोण में जाकर अपना रोष उतारने के लिए अपना वाम चरण पृथ्वी पर तीन बार पछाड़ा। फिर चमरेन्द्र को कहा कि- 'हे चमर! तू विश्व को अभय प्रदान करने वाले श्री वीरप्रभु के शरण में आया, वह बहुत अच्छा किया। क्योंकि ये सर्वगुरुओं के भी गुरु हैं। अब मैंने वैर का त्याग करके तुझे छोड़ दिया है। इसलिए तू खुशी से वापिस चमरचंचा नगरी में जाकर तेरी समृद्धि के सुख का भोक्ता बन।' इस प्रकार चमर को आश्वासन देकर पुनः प्रभु को नमन करके इंद्र अपने स्थान पर चले गये। (गा. 437 से 451) सूर्यास्त होने पर गुफा में से जैसे उलूक निकले वैसे चमरेन्द्र प्रभु के दोनों चरणों के अन्तर से बाहर निकला एवं प्रभु को नमन करके अंजली जोड़कर बोला कि – “सर्व जीवों के जीवन औषधरूप हे प्रभु! आप मुझे जीवनदान देने वाले हैं। आपके चरण की शरण में आने पर अनेक दुःख के स्थान रूप इस संसार से भी मुक्त हो जाते हैं, तो वज्र से मुक्त होना तो क्या बात है? हे नाथ! मैंने अज्ञता से पूर्व भव में बालतप किया था, उसके फलस्वरूप अज्ञान सहित असुरेन्द्र का फल मुझे प्राप्त हुआ। मैंने अज्ञानता से ये सर्व प्रयत्न करके मेरी आत्मा को ही अनर्थकारी किया हैं। परंतु अंत में आपकी शरण में आया, वह अच्छा किया। यदि पूर्व भव में ही मैंने आपका शरण ले लिया होता तो भी अच्युतेन्द्र या अहमिन्द्र पन प्राप्त करता। अथवा हे नाथ! मुझे इन्द्रपने की भी अब क्या जरुरत है? क्योंकि अभी तो तीन जगत्पति आप मुझे नाथ रूप में प्राप्त हुए हो, इससे मुझे सबकुछ प्राप्त हो गया है। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक कहकर प्रभु को नमन करके चमरेन्द्र चमरचंचा नगरी में आया। वहाँ अपने सिंहासन 100 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
SR No.032102
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 08
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages344
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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