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भी सुना नहीं था, वह सुन शक्रेन्द्र कुछ हंसे और विस्मित हुए। पश्चात् अवधिज्ञान से उसने चमरेन्द्र को जानकर कहा 'अरे चमर! तू भाग जा' ऐसा बोलकर भृकुटी चढ़ाकर शक्रेन्द्र ने वज्र हाथ में लिया, और प्रलयकाल की अग्नि का सार हो, विद्युत का मानो संचय हो एवं एकत्रित हुआ वडवानल हो ऐसे उस प्रज्वलित वज्र को इंद्र ने उस पर छोड़ा। तड् तड् शब्द करता और देवताओं को त्रास देता हुआ वह वज्र चमरेन्द्र की ओर दौड़ा। सूर्य को तेज को उलूक की तरह उस वज्र को देखने में भी असमर्थ ऐसा वह चमरासुर वज्र को आते देखते ही वडवानरी की तरह ऊपर पैर और नीचे सिर हो गया और तत्काल चित्रा से चमरी मृग भागे वैसे श्री महावीर भगवंत के शरण में आने की इच्छा से वहाँ से भागा। उस वक्त 'अरे सुराधम! जैसे विशाल सर्प के साथ मेढ़क, हाथी के साथ भेड़, अष्टापद के साथ हाथी, और गरुड़ के साथ सर्प युद्ध करना चाहे वैसे अनात्मज्ञ जैसा तूं हमारे इंद्र के साथ युद्ध करना चाहता है, परन्तु तुझे बुरे हाल के साथ भागना पड़ा। ऐसा कहकर देवता लोग उस पर हंसने लगे। जैसा महादेह धारण कर वह आया था, वैसा ही लघु देही होकर पवन से चले मेघ के जैसे शीघ्रता से भागने लगा। रूप को छोटा करते उस असुर के पीछे धो के जैसे चला आता वज्र ज्वालाओं से श्रेणी द्वारा शोभायमान होने लगा।
(गा. 417 से 436) इधर वज्र को छोड़ने के पश्चात् इंद्र को विचार हुआ कि 'किसी भी असुर की स्वयं की यहाँ तक आने की शक्ति होती नहीं, इस उपरान्त भी यह असुर यहाँ आया तो यह अवश्य ही किसी अर्हन्त, अर्हन्त का चैत्य, या किसी महर्षि को मन में स्मरण करके उनसे शक्ति प्राप्त करके यहाँ आया होगा। ऐसा सोच कर अवधिज्ञान द्वारा इंद्र ने देखा तो ज्ञात हुआ कि वह वीरप्रभु के प्रभाव से यहाँ आया था और वापिस वह वीर प्रभु की शरण में ही गया है, ऐसा जाना। इससे अरे! मैं मारा गया, ऐसा बोलता हुआ इंद्र कि जिसके हार आदि आभूषण टूट रहे थे, वैसे वज्र के मार्ग का अनुसरण कर उसकी तरफ दौड़ा। चमरेन्द्र का निवास साथ ही प्रभु का विहार स्थान अघोभूमि में होने से आगे चमरेन्द्र पीछे वज्र और उसके पीछे शक्रेन्द्र पूर्ण वेग से चल दिया। क्षणभर में प्रतिकार करने वाले के पीछे हाथी की तरह शक्रेन्द्र उनके नजदीक आ पहुँचा। इतने में दावानल से पीड़ित हाथी की तरह नदी के पास आ जाती है वैसे ही वह चमरेन्द्र प्रतिमाधारी प्रभु के पास पहुँच गया एवं शरण! शरण! ऐसा बोलता
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (दशम पर्व)
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