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________________ ही स्वंयवर मंडप तैयार कराया। उसमें विविध आसन द्वारा मनोहर मंच स्थापित किये। उत्तर दिशा के पति कुबेर भी स्वंयवर देखने चले। ___ (गा. 170 से 181) - वह विमान की छाया द्वारा पृथ्वी के संताप को हरता था। उंदड छत्र की श्रेणि द्वारा चंद्र की परंपरा को दर्शा रहा था। विद्युत की उद्यम किरण को नचा रहा हो ऐसा और देवांगना के द्वारा कर पल्लवों से ललित हुए चँवर उन पर बीजे जा रहे थे। सूर्यभक्त वालिखिल्ल की तरह सूर्य की स्तुति करे वैसे बंदिजनों के द्वारा स्तुति की जा रही थी। इस प्रकार आडंबर युक्त कुबेर ने स्वंयवर मंडप में प्रवेश किया। उसमें ज्योत्सना लिप्त आकाश की तरह श्वेत और दिव्य वस्त्र के वलय बांधे थे। कामदेव द्वारा सज्जित हुए पुष्प धनु के जैसे तोरण लटक रहे थे। चारों तरफ रत्नमय दर्पण से अंकित होने के कारण मानो अनेक सूर्यों से आश्रित हो, ऐसा दिखाई देता था। द्वारभूमि पर रही हुई रत्नमय अष्टमंगलिकों से सुशोभित था। आकाश में उडती बगुलियों का भ्रम करती श्वेत ध्वजाओं से वह शोभित था। विविध रत्नमय उसकी भूमि थी। संक्षेप में सुधर्मा सभा का अनुज बंधु हो वैसा स्वंयवर मंडप दृष्टिगोचर हो रहा था। उसमें वहाँ पधारे हुए राजवीरों के दृष्टिविनोद के लिए नाटकों का आयोजन किया गया था। (गा. 182 से 188) ऐसे सुशोभित मंडप में एक उत्तम मंच के ऊपरआकाश में अधर स्थिति सिंहासन पर कुबेर देवांगनाओं के साथ बैठे। उनके नजदीक मानो उनके युवराज ही न हो वैसे वसुदेव कुमार प्रसन्नता से सुंदर मुखाकृति लिये बैठे थे। दूसरे भी उत्कृष्ट ऋद्धि वाले राजा और विद्याधर लक्ष्मी में एक दूसरे की स्पर्धा करते हो, इस प्रकार अनुक्रम से आकर अन्य मंचों पर स्थित हुए। कुबेर ने अपने नाम से अंकित अर्जुन जाति के सुवर्ण की एक मुद्रिका वसुदेव को दी। वह उसने कनिष्ठिका अंगुली में धारण की। उस मुद्रिका के प्रभाव से वहाँ रहे हुए सर्व जनों को वसुदेव कुबेर की दूसरी मूर्ति हो ऐसे दिखे। उसी समय स्वंयवर मंडप में घोषणा हुई कि अहो! भगवान कुबेर देव दो रूप करके आये लगते हैं। (गा. 189 से 194) इधर उसी समय राजपुत्री कनकवती राजहंस के तुल्य मंद गति चलती चलती स्वंयवर मंडप में आई। श्वेत वस्त्रों से सुसज्ति वह चंद्रज्योत्सना की जैसी 88 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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