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________________ संस्कार किया। वहाँ से खेदपूर्वक लौटते समय नगरी में घुसते ही उस सोमशर्मा ब्राह्मण को मस्तक फट कर मर जाते देखा। तब शीघ्र ही उसके पैर में रस्सी बंधवा कर मनुष्यों से पूरी नगरी में घूमवाकर गिद्द आदि पक्षियों को नया बलिदान देने हेतु बाहर फिंकवा दिया। (गा. 134 से 145) गजसुकुमाल के शोक से प्रभु के पास बहुत से यादवों ने और वसुदेव के बिना नव दशाओं ने दीक्षा ली। प्रभु की माता शिवादेवी ने नेमिनाथ जी के सात सहादेर बंधुओं ने और कृष्ण के अनेक कुमारों ने भी दीक्षा ली। राजीमति ने भी संवेग धारण कर प्रभु के पास दीक्षा ली। उसके साथ नंद की कन्या एकनाशा और यादवों की अनेक स्त्रियों ने भी दीक्षा ली। उस समय कृष्ण ने कन्या को विवाह करने का अभिग्रहण धारण किया। तब उनकी सर्व पुत्रियों ने भी प्रभु के समीप दीक्षा ले ली। कनकवती, रोहिणी और देवकी के अतिरिक्त वसुदेव की सर्व स्त्रियों ने भी व्रत ग्रहण किया। कनकवती के घर में रहते हुए संसार की स्थिति का चिंतन करते हुए सद्य की घातिकर्म क्षय हो जाने से केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। नेमिनाथजी के सर्व को ज्ञात कराने पर देवताओं ने उसकी महिमा की। तब स्वयं ही मुनिवेश धारण कर वह प्रभु के समक्ष गयी। वहाँ नेमिनाथ प्रभु के दर्शन करके, वन में जाकर एक मास का अनशन करके वह कनकवती मोक्ष पधारी। (गा. 146 से 153) राम का पौत्र और निषिध का पुत्र सागरचंद्र विरक्त होने से प्रथम वह अणुव्रतधारी हुआ था, उसने उस समय काया प्रतिमा धारण की। (श्रावक की 11 प्रतिमा) एक बार उसने काउसग्ग किया, वहाँ हमेशा उसके छिद्र देखने वाला नमःसेन ने उसको देखा। तब उसके पास आकर नमः सेन बोला- 'अरे पाखंडी! अभी तू यह क्या कर रहा है ? कमलामेला के हरण में जो तूने किया था, अब तू उसका फल चख। ऐसा कहकर उस दुराशय नमःसेन ने उसके मस्तक पर चिता के अंगारे से भरा हुआ घड़े का कांठा रखा। उस उपसर्ग को सम्यक् भाव से सहनकरके उससे दग्ध लेकर सागरचंद्र पंचपरमेष्ठी नमस्कार मंत्र का स्मरण करता हुआ मरकर देवलोक में गया। (गा. 154 से 158) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 277
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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