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________________ के समय में कौन भोजन करे? कदाच् यदि भोजन में चींटी आ गई हो तो वह बुद्धि का नाश करती है। जू खाने में आ जाए तो उससे जलोदर रोग हो जाता है। मक्खी आ जाय तो उल्टियाँ हो जाती है, छिपकली आ जाए तो कुष्ठ रोग हो जाता है। कांटा या लकड़ी का दुकड़ा खाने में आ जाए तो वह गले को व्यथित करती है। भोजन में यदि बिच्छू आ जाय तो वह तालु को बींध देता है तथा भोजन में केश (बाल) गले में लग जाय तो वह स्वर भंग करता है, इत्यादि अनेक दोष सर्व मनुष्यों ने रात्रि भोजन में देखे हैं। रात्रि में सूक्ष्म जीव-जंतु दिखाई नहीं देते। इसलिए प्रासुक (अचित्त) पदार्थ भी रात्रि में खाना नहीं चाहिये। क्योंकि उस समय उनमें भी अवश्य ही अनेक जंतुओं की उत्पत्ति संभवित है। जिसमें जीवों का समूह उत्पन्न होता है, ऐसे भोजन को रात्रि में खाने वाले मूढ़ पुरुष राक्षसों से भी अधिक दुष्ट क्यों न कहे जाए? जो मनुष्य दिन-रात खाता ही रहता है, वह शृंग (सींग) पूँछ बिना का साक्षात् पशु ही है। रात्रि भोजन के दोषों को जानने वाला मनुष्य दिन के प्रारंभ की और अंत की दो-दो घड़ी का त्याग करके भोजन करता है, वह पुण्य का भाजन होता है। रात्रि भोजन के त्याग का नियम किये बिना भेल कोई मनुष्य मात्र दिन में ही भोजन क्यों न करता हो तो भी वह उसके सम्यक् फल को प्राप्त नहीं करता क्योंकि किसी को रूपये देने पर भी ऋण का खुलासा किये बिना ब्याज नहीं मिल सकता। जो जड़ मनुष्य दिन का त्याग करके रात्रि को ही भोजन करते हैं, वे रत्न का त्याग करके काँच का स्वीकार करते हैं। रात्रि भोजन करने से मनुष्य परभव में उल्लू, कौआ, बिल्ली, गिद्द, शंबर, मृग, सूअर, साँप, बिच्छू और गधा अथवा गृह गोधा (छिपकली) के रूप में उत्पन्न होते हैं। जो धन्य पुरुष सर्वदा रात्रि भोजन की निवृत्ति करते हैं, वे अपने आयुष्य के अर्धभाग के अवश्य उपवासी होते हैं। रात्रि भोजन का त्याग करने में जितने गुण रहे हैं, वे सद्गति उत्पन्न करने वाले है। ऐसे सर्व गुणों के गिनने में कौन समर्थ है? (गा. 347 से 361) कच्चे गोरस (दूध, दही और छाछ) में द्विदल अर्थात् जिस अन्न की दो फाड़े हो जाती हैं वे दालें आदि को मिलाने से उसमें उत्पन्न होने वाले सूक्ष्मजंतुओं को केवली भगवंत ने देखे हैं, इससे उसका भी त्याग करना चाहिए। दया धर्म में तत्पर मनुष्यों को जंतुओं से मिश्रित ऐसे फल, पुष्प और पत्र (पत्तों) का त्याग त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 265
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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