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इस भरतक्षेत्र में वैताढ्यगिरि की उत्तर श्रेणी के आभूषणरूप सूरतेज नामक नगर में सूर नामक एक खेचर चक्रवर्ती राजा था । मेघ बिजली सहित जिस प्रकोप के साथ शोभायमान होता है उसी तरह उनके विद्युन्मति नामकी अतिप्रेमपात्र पत्नी थी। धनकुमार का जीव आयुष्य पूर्ण करके सौधर्मदेवलोक सेव कर सूर राजा की पत्नी विद्युन्मति के उदर में आये । समय पूर्ण होने पर चंद्र को पूर्णिमा प्रसवती है उसी प्रकार विद्युन्मति ने सर्व शुभलक्षण से संपूर्ण पुत्र को जन्म दिया। शुभ दिन में पिता ने आनंददायक बड़ा महोत्सव करके 'चित्रगति' नामकरण किया। अनुक्रम से बड़ा होने पर कलाचार्य के पास चित्रगति ने सर्व कलाएं हस्तगत की और कामदेव के समान यौवनवय को प्राप्त किया ।
(गा. 137 से 142 )
इसी समय उसी वैताढ्यगिरि की दक्षिण श्रेणी पर - -- स्थिति शिवमंदिर नामक नगर में अनंगसिंह नामक राजा थे । उनकी शशिप्रभा नाम की एक चंद्रमुखी रानी थी। उनकी कुक्षि में धनवती का जीव सौधर्म देवलोक से च्यवकर अवतीर्ण हुआ। समय पर शशिप्रभा रानी ने एक पवित्र अंगोपांग वाली पुत्री को जन्म दिया। अनेक पुत्रों के पश्चात् जन्म होने से वह पुत्री सभी को अतिप्रिय थी । पिताजी ने शुभदिन के अवसर पर उसका रत्नवती नाम रखा । सजल स्थान में वल्लरी प्रायोग्य सर्व कलाएँ ग्रहण कर ली और शरीर के मंडन रूप पवित्र यौवनवय को प्राप्त किया। एक बार उसके पिताजी ने किसी नैमित्तिक से पूछा कि इस कन्या का वर कौन होगा ? नैमित्तिक ने कुछ सोच कर कहा, जो तुम्हारे पास से खड्गरत्न का अपहरण कर लेगा और सिद्धायतन में वंदन करते समय जिसके ऊपर देवगण पुष्पवृष्टि करेंगे, वह नरलोक में मुकुटरूप पुरुष, योग्य अवसर पर तुम्हारी दुहिता रत्नवती को परणेगा । जो मेरे पास से खड्गरत्न झपट लेगा, ऐसा अद्भुत पराक्रमी मेरा जवांई होगा, ऐसा जानकर प्रसन्न हुए राजा ने नैमित्तिक को खुश करके विदा किया।
(गा. 143 से 151 )
इसी समय में भरतक्षेत्र में चक्रपुर नामक नगर में गुणों में नारायण जैसा सुग्रीव नामक राजा था। उनके यशस्वती नाम की रानी से सुमित्र नाम का पुत्र हुआ और उसकी दूसरी भद्रा नामकी रानी से पद्म नामका पुत्र हुआ। ये अग्रज और अनुज हुए। इनमें से सुमित्र गंभीर विनीत, नम्र, वात्सल्यवान, कृतज्ञ और
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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