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________________ यह सुन सागर मौन रहा, तब जिसका निषेध करे वह संमत है, इस न्याय से उसके पिता ने सागर को घरजंवाई रूप से रहने का स्वीकार किया। सागर का उस कुमारी के साथ विवाह कर दिया रात्रि में उसके साथ वह वासगृह में जाकर शय्या में सोया। उस समय पूर्व कर्म के उदय के योग से उस सुकुमारिका के स्पर्श से सागर का शरीर अंगारे की भांति जलने लगा। जिसे वह मुश्किल से सहन करके सो गया। जब सुकुमारिका सो गई, तब उसे छोडकर अपने घर भाग गया। निद्रा पूर्ण हो जाने पर पति देव को पास में न देख सुकुमारिका रूदन करने लगी। प्रातः जब सुभद्रा वर वधू को दतधावन करवाने के लिए एक दासी को भेजा, तो दासी ने वहाँ जाते ही सुकुमारिका को पति रहित एवं रोती हुई देखी। उसने सुभद्रा के पास आकर सर्व हकीकत कही। (गा. 319 से 329) सुभद्रा ने सर्व बात सेठ से कही। सेठ ने जिनदत्त के पास जाकर उसे उपालंभ दिया। जिनदत्त ने अपने पुत्र को एकांत में बुलाकर कहा कि हे वत्स! तूने सागरदत सेठ जी की पुत्री का त्याग किया वह ठीक नहीं किया, इसलिए तू वापिस उस सुकुमारिका के पास जा। क्योंकि मैंने सज्जनों के समक्ष तुझे वहाँ रहने का स्वीकार किया है। सागर बोला, हे पिता! अग्नि में घुसने को तैयार होना हो तो वह बहुत अच्छा मानता हूँ, परंतु उस सुकुमारिका के पास जाना कभी नहीं चाहूँगा। यह सब बात दीवार के पीछे गुप्त रीति से खड़े सागरदत्त सेठ सुन रहे थे। इससे वे निराश होकर अपने घर आ गये और सुकुमारिका को कहा कि हे पुत्री! सागर तो तुझसे विरक्त हो गया है, इसलिए मैं तेरे लिए अन्य पति की तलाश करूंगा, तू खेद मत कर। (गा. 330 से 33 5) एक बार सागरदत्त सेठ अपने महल के गवाक्ष में बैठ कर रास्ते की ओर देख रहे थे कि इतने में हाथ में खप्पर लिए जीर्ण वस्त्र के टुकड़े को पहने हुए और मक्खियां जिस पर भिनभिना रही थी ऐसा भिक्षुक रास्ते से पसार हो रहा था उसे उन्होंने देखा। तब सागरदत्त ने उसे बुलाकर खप्पर आदि छुड़वा कर स्नानादि करवा कर जिमाया। उसका शरीर चंदनादि से चर्चित कराया। पश्चात उसे कहा कि रे भद्र! यह मेरी पुत्री सुकुमारिका मैं तुमको देता हूँ, इसलिए भोजनादि से निश्चिंत होकर इसके साथ यहां सुखपूर्वक रह। इस प्रकार कहने पर सुकुमारिका 198 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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