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________________ ऐसे घर से बाहर निकले। उस समय देवताओं ने उस बालक पर छत्र धरा। पुष्प की वृष्टि की और आठ उग्र दीपकों से मार्ग में उद्योत करने लगे। तब श्वेत वृषभ रूप होकर उन देवताओं ने दूसरों को न देखे वैसे नगरी के द्वार खोल दिये। जब वसुदेव गोपुर दरवाजे के पास आये, तब पिंजरें में रहे हुए अग्रसेन राजा ने यह क्या? ऐसे विस्मय से वसुदेव को पूछा। तब यह कंस का शत्रु है ऐसा कह उस बालक को उग्रसेन को बताया और कहा, हे राजन्! इस बालक से आपके शत्रु का निग्रह होगा और इस बालक से ही आपका उदय होगा परंतु यह बात किसी से कहना नहीं। उग्रसेन ने कहा, ऐसा ही होगा। (गा. 104 से 110) तब वसुदेव नंद के घर पहुंचे। उस समय नंद की स्त्री यशोदा ने भी एक पुत्री को जन्म दिया था। वसुदेव ने पुत्र को देकर उनकी पुत्री ले ली, और देवकी के पास ले जाकर उसके पार्श्व में पुत्र के स्थान पर सुला दिया। वसुदेव इस प्रकार परिवर्तन करके बाहर गये, तब कंस को पुरूष जाग उठे और क्या हुआ? कौन जन्मा ? ऐसे पूछते हुए अंदर आए। वहाँ पुत्री हुई है यह उन्होंने देखी। वे उस पुत्री को कंस के पास ले गए। उसे देखकर कंस विचार में पड़ गया कि जो सातवा गर्भ मेरी मृत्यु के लिए होने वाला था, वह तो कन्या मात्र हुआ है इससे सोचता हूँ कि मुनि का वचन मिथ्या हुआ। तो अब इस बालिका को क्यों मारना? ऐसा विचार करके उस बाला की एक ओर की नासिका छेद कर उसे वापिस देवकी के पास भेज दिया। (गा. 111 से 115) यहाँ कृष्ण रंग के कारण कृष्ण नाम से बुलाते देवकी का पुत्र देवताओं से रक्षा कराता नंद के घर वृद्धि पाने लगा। एक मास व्यतीत हुआ कि देवकी ने वसुदेव से कहा हे नाथ! उस पुत्र को देखने के लिए मैं उत्कंठित हुई हूँ, अतः आज मैं गोकुल जाऊँगी। तब वसुदेव ने कहा, प्रिये। यदि तुम अचानक ही वहाँ जाओगी तो कंस को जानकारी हो जाएगी। इसलिए कोई भी कारण बताकर तुम्हारा गोकुल में जाना उचित है। तुम बहुत सी स्त्रियों को साथ लेकर गाय के मार्ग में गोपूजा करते करते गोकुल में जाओ। देवकी वैसा ही करती हुई नंद के गोकुल में आई। वहाँ हृदय में श्रीवत्स का लंछन वाला, नीलकमल जैसी कांति वाला प्रफुल्लित कमल जैसे नेत्र वाला कर चरण में चक्रादिव्य के चिह्न वाला और 156 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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