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बंध्या) होगी। यह सुनकर सुलसा ने इंद्र नैगमेषी देव आराधना करी | इससे देव संतुष्ट हुआ तब उसने देव से पुत्र की याचना की । देवता ने अवधिज्ञान से जानकर कहा हे धार्मिक स्त्री ! कंस ने मारने के लिए देवकी से गर्भ मांगे हैं। वे मैं तेरे प्रसव के समय तुझको अर्पण कर दूँगा । ऐसा कह कर उस देव ने अपनी शक्ति से देवकी और सुलसा को साथ ही राजस्वला किया और वे दोनों साथ साथ सगर्भा हुई। दोनों ने साथ ही जन्म दिया। तब सुलसा के मृतगर्भ के स्थान पर उस देवता ने देवकी के सजीवन गर्भ को रख दिया और उसके मृतगर्भ को देवकी के पास रखा। इस प्रकार उस देवता ने गर्भ परिवर्तन कर दिया । कंस ने उस सुलसा के मृतगर्भ को पत्थर की शिला पर जोर-जोर से पटका । एवं स्वयं ने उनको मारा, ऐसा मानने लगा । इस प्रकार देवकी के छहों गर्भ सुलसा के घर पुत्र की तरह उसका स्तनपान करके सुखपूर्वक बढने लगे। उनका अनीकयश अनंतसेन अजितसेन निहतारी, देवयशा और शत्रुसेन इस प्रकार नाम रखे गये ।
(गा. 89 से 97 )
अन्यदा ऋतुस्नाता देवकी ने निशा के अंत में सिंह, सूर्य, अग्नि, गज, ध्वज विमान और पदमसरोवर ये सात स्वप्न देखे । उस समय उस गंगदत का जीव महाशुक्र देवलोक से च्यवकर उसकी कुक्षि में अवतरा । तब जैसे खान की भूमि रत्न को धारण करती है उसी प्रकार देवकी ने गर्भ धारण किया। अनुक्रम से को भाद्रवा मास की कृष्ण अष्टमी को मध्यरात्रि में देवकी ने कृष्ण वर्ण वाले पुत्र जन्म दिया। जो पुत्र देव के सानिध्य से जन्मते ही शत्रुओं के दृष्टिपात का नाश करने वाला हुआ। जब उनका जन्म हुआ तब उसके पक्ष के देवताओं ने कंस के रखे हुए चौकीदार पुरूषों ने अपनी शक्ति से मानो विषपान किया हो वैसे निद्रावश कर दिया। उस समय देवकी ने अपने पति को बुलाकर कहा, हे नाथ! मित्र रूप में शत्रु ऐसे कंस ने तुमको वाणी से बांध लिया ओर उस पापी ने मेरे छः पुत्रों को जन्मते ही मार डाला। इसलिए इस पुत्र की माया द्वारा भी रक्षा करो। (गा. 98 से 103)
बालक की रक्षा करने के लिए माया करने में पाप लगता नहीं है । मेरे इस बालक को आप नंद गोकुल में ले जाओ, वहाँ मामा की भांति रहकर यह पुत्र बडा हो जाएगा। उसके ऐसे वचन सुनकर तूने बहुत अच्छा विचार किया ऐसे बोलते हुए स्नेहार्द्र वसुदेव उस बालक को लेकर, जब सब पहरेदार सो गये थे,
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
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