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________________ ने भी उसको पूछा तू नलराजा है? वह बोला- तुम सभी भ्रांत हुए हो, क्योंकि देवता जैसे स्वरूपवान नलराजा और कहाँ दिखने में भी असुंदर ऐसा मैं कहाँ ? तब राजा के अति आग्रह से वह कुबड़ा आर्द्र गीले अक्षर को मार्जन करने के लिए जैसे पत्र को छुते हैं वैसे अतिलाघव से अंगुली द्वारा दवदंती के वक्षःस्थल का स्पर्श किया। अंगुली के सहज मात्र स्पर्श होते ही अद्वैत आनंद मिलने से वैदर्भी का शरीर बिल्बवृक्ष जैसे रोमांचित हो उठा। तब वैदर्भी ने कहा कि हे प्राणेश! उस समय तो मुझे सोई हुई छोड़कर चले गए होंगे, परंतु अब कहाँ जायेंगे? (गा. 1029 से 1034) ___ अतिदीर्घ काल पश्चात आप मेरी दृष्टिपथ में आए हो। इस प्रकार बार बार कहती हुई उस कुब्ज को अंतर्गह में ले गई। वहाँ कुब्ज ने उस श्रीफल और करंडक में से वस्त्रांलकार निकाले। उसे धारण करने से अपने असली स्वरूप को प्राप्त हुये। वैदर्भी ने वृक्ष को लता के सदृश अपने यर्थाथ स्वरूपवाले पति का सर्वांग आलिंगन किया। तब कमलनयन नलराजा द्वार के पास आये। तब भीमराजा ने आलिंगन करके अपने सिंहासन पर उसे बिठाया। आप ही मेरे स्वामी हो यह सब आपका है। इसलिए मुझे आज्ञा दो, कि क्या करूँ? इस प्रकार बोलता हुए भीमराजा उनके आगे छड़ीदार की तरह अंजलि जोड़कर खड़े रहे। दधिपर्ण ने नलराजा को नमन करके कहा कि सर्वदा तुम मेरे नाथ हो मैंने अज्ञान से आपके प्रति जो कुछ अन्याय प्रवृत्ति की है उसे क्षमा करना। (गा. 1035 से 1039) किसी समय धनदेव सार्थवाह विपुल समृद्धि के साथ हाथ में भेंट लेकर भीमरथ राजा को मिलने आया। वैदर्भी के पहले के उपकारी उन सार्थवाह का भीमराजा ने बंधु के समान अत्यंत सत्कार किया। पूर्वकृत उपकार से उत्कंठित दवदंती ने अपने पिता से कहा राजा ऋतुपर्ण चंद्रयशा उनकी पुत्री चन्द्रवती और तापसपुर के राजा बसंत श्री शेखर को बुलाया। इसलिए वे सब वहाँ आए। भीमराजा ने अतिशय सत्कार द्वारा नये नये आतिथ्य से प्रसन्नचित्त होकर एक महिने तक वहाँ रहे। (गा. 1040 से 1043) एक बार वे सभी भीमराजा की सभा मे एकत्रित होकर बैठे थे कि इतने में प्रातःकाल में अपनी प्रभा से आकाश को प्रकाशित करता हुआ कोई देव वहाँ त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व) 141
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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