SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पृथ्वी पर जा गिर पड़ा। इस प्रकार स्वप्न का वृत्तांत सुनकर भीमराजा बोले- हे पुत्री! यह स्वप्न अति शुभ फलदायक है। जो तूने निवृत्ति को देखा, वह तेरी उदित हुई पुण्यराशि समझना। उसका लाभ हुआ आकाश में जो उद्यान तुमने देखा इससे यह समझना कि तेरी पुण्यराशि तुझे कोशलानगरी का ऐश्वर्य देगी। आम्रवृक्ष पर चढने से तेरा पति के साथ जल्दी ही समागत होगा, साथ ही पहले से चढा हुआ जो पक्षी वृक्ष से गिरा, वह कुबेर राजा राज्य से भ्रष्ट होंगे। इस प्रकार निःसंशय तू समझना। प्रातःकाल में तुझे स्वप्न दर्शन हुआ है, इससे आज ही तुझे नलराजा मिलेंगे, क्योंकि प्रभातवेला में स्वप्न शीघ्र फलदायी होते हैं। (गा. 10 13 से 1020) इस प्रकार पिता पुत्री बात कर रहे थे कि इतने में दधिपर्ण राजा के नगर द्वार के पास आने के समाचार एक मंगल नाम के पुरूष ने महाराजा को दिये । शीघ्र ही भीमराजा दधिपर्ण के पास आए और मित्र की तरह आलिंगन करके मिले। उसको स्थान आदि देकर, उनका सत्कारादि करके कहा कि हे राजन्! आपका कुबड़ा रसोइया सूर्यपाक रसवती करना जानता है वह हमको बताइये। उसे देखने की हमको बहुत इच्छा है, अभी अन्य बातें करने की जरूरत नहीं है। तब दधिपर्ण ने वह रसोई बनाने की कुबड़े को आज्ञा दी। तब उसने कल्पवृक्ष की भांति पलभर मात्र में वह करके बता दी। तब दधिपर्ण के आग्रह से साथ ही स्वाद की परीक्षा करने के लिए वह रसवती, भीमराजा ने परिवार के साथ खाई। उस रसोई के भात से भरा हुआ एक थाल दवदंती ने मंगाया और खाया। उस स्वाद से उसने जान लिया कि यह कुबडा नलराजा ही है। दवदंती ने अपने पिता को कहा कि - पूर्व में किसी ज्ञानी आचार्य ने मुझे कहा था कि इस भारतक्षेत्र में सूर्यपाक रसोई नल के अतिरिक्त अन्य कोई जानता नहीं है, अतः यह कुबड़ा था हुंडा जो भी हो, यह नलराजा ही हैं। इसमें जरा भी संशय नहीं है। इनके ऐसे होने में अवश्य ही कोई कारण है। (गा. 1021 से 1028) जिस प्रकार इस रसोई से नल की परीक्षा ली, उसी प्रकार दूसरी भी एक परीक्षा है, कि यदि नलराजा की अंगुली का मुझे स्पर्शं हो तो तत्काल मेरे शरीर में रोमांच हो जाए। इसलिए यह कुबड़ा अंगुली से तिलक रचता हो वैसे मेरा स्पर्श करो। इस निशानी से नलराजा वास्तविक रूप से पहचान लिये जाएंगे। भीमराजा 140 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy