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उस वृक्ष को हाथ में लेकर कोई रूपवान् पुरुष ने कहा, "यह आम्रवृक्ष आज तेरे गृहांगण में रोपा जा रहा है।" जैसे-जैसे काल व्यतीत होगा वैसे-वैसे वह उत्कृष्ट फलयुक्त होकर भिन्न-भिन्न स्थान पर नौ बार पावन होगा। अनुपम स्वप्न दर्शन से हर्षित हो रानी ने सर्व वृत्तांत राजा से कहा। राजा ने स्वप्नवेत्ताओं के साथ विचार-विमर्श किया। नैमित्तिकों ने हर्षित होकर कहा, हे राजन्! इस स्वप्न से यह सिद्ध होता है कि आपको उत्कृष्ट भाग्यशाली पुत्ररत्न होगा किन्तु स्वप्नगत आम्रवृक्ष का आरोपण नौ स्थान पर होना, इसका आशय तो केवली भगवान् ही बता सकते हैं। यह हमारे ज्ञान की सीमा से बाहर है। नैमित्तिकों के कथन से धारिणी देवी को अत्यन्त खुशी हुई और वह पृथ्वी में निधि तुल्य गर्भ का संरक्षण करने लगी। परिपूर्ण समय पर रानी ने पूर्व दिशा में सूर्य समान जगत् को हर्ष के कारणभूत सुंदर सलोनी आकृति युक्त पुत्र को जन्म दिया। राजा ने महादानपूर्वक पुत्र का जन्ममहोत्सव किया और उत्तम दिन में धनकुमार नामकरण किया। धायमाताओं के लालन-पालन से एवं नरपतियों के एक उत्संग से दूसरे उत्संग में खेलता हुआ धनकुमार बड़ा होने लगा। अनुक्रम से उसने सर्व कलाएँ संपादन कर ली एवं कामदेव के क्रीड़ावान स्वरूप यौवनवय में प्रवेश किया।
(गा. 11 से 20) इसी समय कुसुमपुर नामक नगर में सिंह जैसा पराक्रमी और रणकार्य में यशस्वी “सिंह' नाम का राजा था। उसके चंद्रलेखा सी निर्मल और प्राणवल्लभा विमला नामक रानी थी, जो कि पृथ्वी पर विचरण करने वाली देवी स्वरूपा लगती थी। उनके पुत्रों के पश्चात राजरानी के धनवती नामक पुत्री उत्पन्न हुई। अपनी रूपसंपदा द्वारा रति आदि रमणियों के रूप को पराजित करती हुई वह बाला शनैः-शनैः वृद्धि को प्राप्त हुई और सर्वकलाओं में पारंगत हुई। एक दिन बसंतऋतु आने पर वह बाला अपने सखी वृंद के साथ उद्यान की शोभा देखने गई। उस समय उद्यान में प्रफुल्लित सप्तपर्ण के वृक्षों पर भ्रमण करते हुए भँवरे संगीत कर रहे थे, बाण जाति के वृक्षों की नवीन कलियाँ मानो कामदेव के बाण समान थी, उन्मत्त सारस युगल, केंकार शब्द कर रहे थे, स्वच्छ जल वाले सरोवर में कलहंसों के समूह क्रीड़ा कर रहे थे और गीत गाती हुई माली की स्त्रियों से सुशोभित वह उद्यान अत्यन्त मनोहर दिखाई दे रहा था। ऐसे रमणीय उद्यान में यह बाला स्वच्छन्द विचरण करने लगी।
(गा. 21 से 28)
त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)