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________________ दिया। सैन्य के किए हुए जलपान से जलाशयों में कीचड़ ही शेष रह गया। सैन्य के चलने से आच्छादित उड़ी रज से आकाश में भी दूसरी पृथ्वी हो गई। इस प्रकार चलते हुए निषधराज को मार्ग में ही रवि अस्त हो गया। तब जल से बिल की तरह अंधकार से संपर्ण ब्रह्माण्ड व्याप्त हो गया। ऐसा होने पर भी अपनी नगरों के दर्शन में उत्कंठित ऐसा निषधराज आगे चलने से रूका नहीं, क्योंकि अपने नगर में पहुंचने की प्रबल उत्कंठा किसे नहीं होती? तब अंधकार का एक धन राज्य हो गया सब स्थल जल गर्त या वृक्ष आदि सर्व अदृश्य हो गए। अंधकार से दृष्टि का रोध होने पर चतुरिन्द्रिय प्राणी जैसा हुआ अपने सैन्य को देखकर नलकुमार ने उत्संग में सोई दवदंती को कहा देवी! क्षणभर के लिए जागो। यशस्वीनी अंधकार से पीडित ऐसे इस सैन्य पर तुम्हारे तिलक रूपी सूर्य को प्रकाशित करो। जब दवदंती ने उठकर तिलक का मार्जन किया तब अंधकार रूप सर्प में गरूड़ जैसा वह तिलक अत्यंत प्रदीप्त होकर चमकने लगा। जब सर्व सैन्य निर्विघ्न चलने लगा। प्रकाश के अभाव में लोग जीवित भी मृतवत रहे। (गा. 373 से 383) __ आगे जाने पर परमखंड की तरह भ्रमरों को आस पास से आस्वादन कराते एक प्रतिमाधारी मुनि नल राजा को दिखाई दिए। उनको देख नलकुमार ने पिता श्री से कहा-स्वामिन! इन महर्षि को देखो और उनको वंदन करके मार्ग का प्रासंगिक फल प्राप्त करो। कायोत्सर्ग में स्थित इन मुनि के शरीर के साथ कोई मदधारी गजेंद्र ने गंडस्थल को खुजालने की इच्छा से वृक्ष की तरह घर्षण किया है। उसके गंडस्थल को अत्यंत घिसने से इन मुनि के शरीर में उसके मद की सुंगध प्रसरी हुई है फलतः ये भ्रमर उनको डंक दे रहे हैं। तथापि मुनि इस परीषह को सहन कर रहे हैं। स्थिर पादवाले पर्वत की भांति इन महात्मा को वह उन्मत हाथी भी ध्यान से विचलित कर सका नहीं, ऐसे महामुनि मार्ग में अपने को बड़े पुण्ययोग से ही दृष्टिगत हुए हैं। यह सुनकर निषधराज को श्रद्धा उत्पन्न हुई, जिससे पुत्र और परिवार सहित प्राप्त हुए उत्तम तीर्थ की तरह उन मुनि की सेवा करने लगे। निषध राजा स्त्री सहित नल कुबेर और अन्य सभी उनको नमन करके स्तवना करके और मद के उपद्रव रहित आगे चले। अनुक्रम से कोशला नगरी के परिसर में आए तब नल ने दवदंती को कहा, देवी। देखो यह जिनचैत्यों से मंडित हमारी राजधानी आ गई। दवदंती मेघ दर्शन से मयूरी की तरह उन 100 त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित (अष्टम पर्व)
SR No.032100
Book TitleTrishashti Shalaka Purush Charit Part 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSurekhashreeji Sadhvi
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2014
Total Pages318
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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