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२०८ शुभ जसु वांछा शुभ जसु सीसा, विधिहि विहारनी करण जगीसा। मुनिक गाम नगर एक पंच दिनमान, रहें ए सूद्धाश्रये जुगप्रधान || मुनि० ॥३३७॥ प्रतिमा प्रतिपन्न अथ जिनकल्पी, थेरकल्पी ते मास कल्पी । मुनि० इंद्रिय पंचना विषय जेणे जीता, सात भय टलिया थया वदीता ॥ मुनि०॥ ॥ ३३८ । सचित्त अचित्तनें मीस जे द्रव्य, राग रहिता ते न करें गर्व । मुनि० संयत संयमवंत जे विरता, हिंसादिकथी जेय निवरत्या ॥ मुनिः॥३३९ ॥ बाह्य अभ्यंतर परिग्रहें रहीया, मुत्ता तेय श्रीजिनवर कहिया। मुनि० अलपोपधि जसु जाणो लहुआ, अभिलाख रहित निरवकंख हुउआ ॥ मुनि० ॥ ३४०॥ साहु ते मोक्ष साधनथकी हुआ, उपशांत वृत्ति ते भाख्या निहुआ। मुनि० एहवा साधु निश्चल धर्म साधे, तमु गुण संभले हर्ष घण वाधे ॥ मुनि०॥ ३४१ ॥ जसु गुण संभलें आनंद पावं, अहनिश भावस्युं तमु गुण गावू । मुनि० श्रीपासचंद मूरिवर सुगुरु पसाइ, श्रीसमरचंद इम भणे बंदीये भाइ । मुनि० ॥ ३४२॥ (ढाल-राग. गोडी. लकडी. चालती तथा त्रुकटमां.)
चंपा वीरजिणेसरू, साधु तणे परिवारें । परिवरिया आव्या जया, चउविह सुर परिवारें ॥-परिवारस्यु परिवर्या आवें, वीर वंदेवा भणी । भवण वण जोयसी नायक, कल्प बारहना धणी ।। चउसठ मुरपति करें सेवा, विनय भाव हिये धरी। एटले चंपा नयरि, माहें, वात पसरी तेह खरी ।।