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१७१ शशि जीतो वयणेय, प्रमाण जुय सोहे सवणेय ॥ २७ ॥ गल्ल सुमांसल अतियें सुचंग, भुमुह धनुष सम कृष्ण सुरंग । नयण पुंडरीय विकसित जेम, कमल दलोपम लोचन तेम २८॥ सरल रत्तंग नासिका कही, अधरें विद्रुम ओपम लही। दंत जीस्या दाडिमनी कली, अविरल अखंड दंत ते वळी ॥ २९ ॥ एक दंत श्रेणि जिम जाण, अंतर रहित अनेक वखाण । कनक तपाव्यु तालुय जीह, रत्तुप्पल दल सरसी लीह ॥३० ।। दाढी मूछ अवस्थित रहें, वृद्धि विना अति शोभा लहे । ग्रीवा चौरंगुला प्रमाण, त्रिवली युत वर शंख समाण ॥३१॥हणुआ भण्या मद्दल सरीस, अतिहि समांशल शोभे ईश । सिंह, सहूल वृषभ जिम खंध, पुर अग्रल भुज दंड सु संध ॥ ३२ ॥ कलाचिका दोई वृत्ताकार, नागराज तनु बाहु विचार । रत्तुष्पल सम प्रभुना पाणि, अतिसुकुमाल समांसछ जाणि ॥ ३३॥ लक्षण सहित अछिद्रत वळी, कोमल लांबी तिह अंगली । नखुआ ताम्रवर्ण पातळा, निद्ध मनोहर अति. वाटुळा ॥ ३४ ॥ चंद्रसूर चामर आकार, छत्र जेहवो भूविविध प्रकार । दशा सत्थि शंख चक्राकार, करे हवी रेखा भंडार ॥३५॥ कनक शिला सम हृदय विशाल, श्रीवच्छांकित गत जंजाल । कंडू रोग रहित प्रभु देह, सहस अट्ठोत्तर लक्षण गेह ॥३६ ॥ नहु दीसे पूठे पांसुली, ऊतरती उतरती वळी । संगत सुंदर पासा कह्या, मात्रा युत भवियण सद्दह्या ।। ३७ ।। रोमराय अतिसरल सुचंग, निद्धा देय मुहुम अलिरंग । पंखी