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१५४ सोभासरस, देखि नांहि कहूं रावरांणे चल्यो० ॥६३॥ ढलकती ढाल सन्नाह सबसाजिया, तीर तरवार नेजा विराजे । सरस सामंत्र अणी कोज फावे घणी, सुस्टभर सूरमा संग साजे चल्यो० ॥६४॥ रंग प्रचरंग निसाण गज पीठपर, नवनवे नाद नौबत्त वाजे । सखर जासोल हारोल आगेचले, देखिदल प्रबल भूपाल भाजे चल्यो० ॥६५॥ साधुअरु साधवी स्वेतप्रटा दिग्पटा, आयरिया और उवझाय के ते । भेख खटदर्शनी भाद भोजक गुनी, कोंण गिणती करें संग जे ते चल्यो० ॥६६॥ अवल ओसवाल श्रीमाल पोरवाड़ अति, न्यात चोरासीया संगलीन्हां । वडावडासाह नरनाह संग चालीया, तेहतणा मांन सनमांन कीन्हां चल्यो० ॥६७॥ प्रथम चोमास श्रीवीरजिन जिहां कों, नगर वधमान नयणे निहार्यो । पृष्टिचंपा पुरी देखी आणंदभरी, जीर्ण जिनराज मंदिर जुहार्यो चल्यो० ॥६८॥ नगर पचेट रघुनाथजी भेटीया, सतीय सीता रहे जिहां वासें । देखि पाहाड वनझाड लंगरदल, संघना लोक सब रह्या तमासे चल्यो० ॥३९॥ तिहाथकी नगर विंदापुरी आवीया, पूज जिनराज भयो अतिउच्छाहो । तिहाथकी आविया. सिखरगिरि तलहटी,देखिगिरिराज लीयो जनम लाहो चल्यो० ॥७०॥ हरखउल्लाससों सिखरऊपर चन्या, जाय जिनराजनो दर्शकीधो। स्नात्र पूजा प्रतिष्ठा करि भावसों, मातजी जनमनो लाभ लीधो चल्यो० ॥७१॥ स्तनसौवर्णनी विविध आंगीरची, सातदशभेद पूजा रचाई। वीस हूं टंक जिहां वीसजिन सिद्ध