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१११ ॥६३॥ उत्सव मांडे सार, करि जे कौतुक कोडि वधामणा। याचक जय जयकार, जण जण मुख मुख नूर चढे घणा ॥६४॥ शिणगारे बाजार, गलिये गलिये फूल विखेरिया। ताता तेजी तुरंग, मदगरता मयंगल शिणगारिया ॥६५॥ आरी सांरी पोळ, नाचे गटिक बद्ध बत्रिशजे । ग्डि धुंधूं घुरेरे नीसाण, भेरी नफेरी ताल कंसालजे ॥६६॥ पंचरंग नेजा हाथ, चाले आगळ पायक दोडता। इणिपरे गाणिक चोक, गहमह आवे हो सोहला गावता ॥६७॥ कुमरी सहित कुमार, हाथीनी अंबाडी हो बेठा सज करी । मेघाडंबर छत्र, चामर ढलकतां हो शोभा बहु परि ॥६८॥ दीसे देव कुमार इंद्र इंद्राणी हो ए आगळ किशुं। नर नारी निरखंत, रूपें न कोई जगजाण्यो इशुं ॥६९॥ आवे हरख अपार, राज आवासे आपण महेलमें । सात पिता नमी पाय, हरखे कुमरी जइ सामने नमें ॥७०॥ राणी । आशीष, सदा सोहागणी सुजस लहो सही । लखमी लील विलास, करम प्रसादे सघले करमसिहि ॥७॥
दूहाःअशोक कुंवर युवराजवी, काम भोग विलसंत । छह ऋतु बारे मासना, माणे मननी खंत ॥७२।। अपत्सरथी मानी अधिक, रोहिणी रंग रसेण । प्राणपियारी पदमिणी, (तप सपिया फल) तेण ॥७३॥ तिण अवसर आवे तिहां, सूधारे साधु, निग्रंथ । चरण करण तारण, तरण, मुक्ति साधता