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आस्तिक दर्शन और धार्मिक दर्शन
३६६ विमुक्तात्मा की इष्टसिद्धि अद्वैत विषय पर एक खण्डनात्मक ग्रन्थ है । इसकी शैली बहुत क्लिष्ट है । विमुक्तात्मा का समय ८५० ई० और १०५० ई. के मध्य में माना जाता है। सर्वज्ञात्मा (लगभग ६०० ई०) ने अपने ग्रन्थ संक्षेपशारीरिक में शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्रभाष्य का सारांश दिया है । सर्वज्ञात्मा के और दो ग्रन्थ हैं-प्रमाणलक्षण और पंचप्रक्रिया । प्रकाशात्मा (लगभग १२०० ई०) ने दो ग्रन्थ लिखे हैं--पद्मपाद की पंचपादिक की टोका पंचपादिकाविवरण और (२) ब्रह्मसूत्रों को टोका न्यायसंग्रह । इसी समय नैषधीयचरित के सुप्रसिद्ध लेखक श्रीहर्ष ने खण्डनखण्डखाद्य नामक ग्रन्थ लिखा है । यह खंडनात्मक ग्रन्थ है । इसमें अद्वैतमत की पुष्टि और नैयायिकों के मत का खण्डन किया गया है। वाचस्पति मिश्र की भामती टीका अमलानन्द (१२२५ ई०) ने अपने ग्रन्थ कल्पतरु में की है । चित्सुख (लगभग १२२५ ई०) ने शंकराचार्य के ब्रह्मसूत्रभाष्य की टीका के अतिरिक्त खण्डनखण्डखाद्य, ब्रह्मसिद्धि और नैष्कर्म्यसिद्धि की भी टीका की है । इसके अतिरिक्त उसने एक स्वतन्त्र ग्रन्थ तत्त्वदीपिका लिखा है । व्यासयति (लगभग १३०० ई०) ने न्यायामृत में इसी तत्त्वदीपिका का खण्डन किया है। विद्यारण्य विजयनगर के माधव (१२६७१३८६ ई०) का दूसरा नाम था । उसने ये ग्रन्थ लिखे हैं--विवरणप्रमेयसंग्रह, पंचदशी, जीवन्मुक्तिविवेक और वैयासिक्यन्यायमाला । वैयासिक्यन्यायमाला ग्रन्थ का कुछ अंश विद्यारण्य ने लिखा है और कुछ अंश भारतीतीर्थ ने । सदानन्द ने १५वीं शताब्दी में अद्वैत विषय पर एक बहमल्य ग्रन्थ वेदान्तसार लिखा है। धर्मराजाध्वरिन् ने १६वीं शताब्दी में अद्वैतपरिभाषा ग्रन्थ लिखा है । इस ग्रन्थ का दूसरा नाम वेदान्तपरिभाषा है । यह अद्वैत-तत्त्वमीमांसा विषय पर बहत सुन्दर पुस्तक है । सांख्य और योग दर्शन पर विभिन्न ग्रन्थों के लेखक विज्ञानभिक्षु ( १५५० ई० ) ने ब्रह्मसूत्रों पर विज्ञानामृत नाम की टीका लिखी है । मधुसूदनसरस्वती (लगभग १६०० ई०) ने अद्वैतसिद्धि ग्रन्थ लिखा है। इसमें अद्वैतमत की पुष्टि और व्यासयति के न्यायामृत का खण्डन किया है । मधुसूदन सरस्वती के अन्य ग्रन्थ ये हैं-(१) शंकराचार्य की दशश्लोकी की टीका सिद्धान्तबिन्दु (२) भगवद्गीता की टीका गूढार्थदीपिका और (३)