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मीमांसा-दर्शन
३८६ तन्त्र-सिद्धान्तदीपिका । यह मीमांसा-सूत्रों पर एक अपूर्ण टीका है । (४) उपक्रमपराक्रम और (५) वादनक्षत्रमाला आदि । भट्टोजिदीक्षित ( लगभग १६३० ई० ) ने तन्त्रसिद्धान्त ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने मीमांसा के सिद्धान्तों का विवेचन किया है । इस ग्रन्थ में उसने अप्पयदीक्षित को अपना गुरु बताया है। राजचूडामणि दीक्षित ( लगभग १६२० ई० ) ने अपने ग्रन्थ तन्त्रशिखामणि में मीमांसा-सूत्रों की व्याख्या की है । उसने संकर्षमुक्तावलि ग्रन्थ भी लिखा है । विश्वगुणादर्श के लेखक वेंकटाध्वरिन् ( लगभग १६५० ई० ) ने तीन ग्रन्थ लिखे हैं—न्यायपद्म, मीमांसामकरन्द और विधित्रयपरित्राण । लगभग इसी समय विश्वेश्वरसूरि ने भट्टचिन्तामणि ग्रन्थ लिखा है । विश्वेश्वरसूरि का दूसरा नाम गागाभट्ट था। आपदेव ने मीमांसा-दर्शन पर एक प्रसिद्ध पुस्तिका मीमांसान्यायप्रकाश लिखी है। उसका स्वर्गवास १६६५ ई० में हुआ था । इसी प्रकार के एक प्रसिद्ध ग्रन्थ तर्ककौमुदी के लेखक लौगाक्षिभास्कर का लिखा हुआ अर्थसंग्रह है। प्रापदेव के समकालीन खण्डदेव ने चार महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ लिखे हैं। उनके नाम है-भाट्टदीपिका, भाट्टरहस्य, फलैकत्ववाद और मीमांसाकौस्तुभ । इनमें आस्तिकवाद का भी भाव व्याप्त है। मीमांसा. कौस्तुभ में मीमांसा-सूत्रों का विवेचन है । अन्नभट्ट ( लगभग १७०० ई० ) ने राणक-भावनाकारिकाविवरण ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने सोमेश्वर की राणक टीका में दिए स्मरणीय श्लोकों का स्पष्टीकरण किया है । पार्थसारथि मिश्र की न्यायरत्नमाला के टीकाकार रामानुजाचार्य (लगभग १७५० ई०) ने प्रभाकर के मतानुसार मीमांसा-सूत्रों की एक चालू टीका तन्त्ररहस्य लिखी है । यह पाँच अध्यायों में है और अपूर्ण है । सिद्धान्तकौमुदी की बालमनोरमा टीका के लेखक वासुदेवाध्वरिन् (लगभग १७५० ई०) ने मीमांसा-सूत्रों की टीका अध्वरमीमांसाकुतूहलवृत्ति नाम से की है। १६वीं शताब्दी ई० में कृष्णताताचार्य ने भाट्टसार ग्रन्थ लिखा है । इसमें भाट्ट शाखा के मन्तव्यों का सरल रूप में स्पष्टीकरण किया गया है ।