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छन्दःशास्त्र और कोशग्रन्थ
___ कोशग्रन्थ कोशग्रन्थ निघण्टु-परम्परा के ही अविच्छिन्न रूप हैं । निघण्टु में वैदिक शब्दों का संग्रह है । इसको व्याख्या निरुक्त नाम से यास्क ने को है । कोशग्रन्थों में प्रयुक्त शब्दों का संग्रह होता था और कवियों आदि को सुविधा प्राप्त होती थी कि वे उन शब्दों में से उचित शब्दों को छाँट लें। इनमें किसी विशेष ग्रन्थ के ही शब्दों का संग्रह नहीं होता था। निरुक्त में संज्ञाशब्दों और धातुओं दोनों का ही वर्णन है । अन्य कोशग्रन्थों में संज्ञाशब्दों और अव्ययों का अधिक वर्णन है, धातुओं का कम । इन कोशग्रन्थों में शब्दों को अकारादि क्रम से नहीं रक्खा गया है । उनको पद्य का रूप दिया गया है। उनके श्लोकों को स्मरण किया जाता था। कोशग्रन्थों में दो प्रकार के शब्दों को स्थान दिया जाता था-समानार्थक और नानार्थक । समानार्थक शब्दों में शब्दों को अर्थ के अनुसार रक्खा जाता है । कहीं पर शब्दों को प्रारम्भिक अक्षरों के अनुसार और कहीं पर अन्तिम अक्षर के अनुसार और कहीं पर दोनों के मिश्रित रूप में रक्खा गया है। कहीं पर शब्दों को अक्षरों की संख्या के अनुसार भी रक्खा गया है। कहीं-कहीं पर लिंगनिर्देश किया गया है । संज्ञाशब्द प्रथमा विभक्ति में दिये गये हैं । कतिपय कोशग्रन्थों में केवल नानार्थक शब्दों को ही रक्खा गया है। जिसमें समानार्थक शब्द रक्खे गये हैं, उनमें भी नानार्थक शब्दों के लिए एक अध्याय दिया गया है।
सबसे प्राचीन शब्दकोश ये हैं कात्यायन कृत, नाममाला, वाचस्पति का शब्दकोश, विक्रमादित्य का शब्दकोश, शब्दार्णव ग्रन्थ, संसारावर्त तथा व्यडि कृत उत्पलिनी । ये सभी ग्रन्थ अब नष्ट हो चुके हैं। नानार्थक शब्दों पर एक ग्रन्थ है नानार्थशब्दरत्न । इसका रचयिता कालिदास को माना जाता है। महाराज भोज से प्रेरित होकर निचुल कवि ने इस पर तरला नाम की एक टीका लिखी है। इस विषय में कोई प्रमाण नहीं मिलता कि कालिदास ने नानार्थशब्दरत्न की रचना की थी। निचुल कवि की