SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 311
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ संस्कृत साहित्य का इतिहास काव्यं यशसेऽर्थकृते व्यवहारविदे शिवेतरक्षतये । सद्यः परनिर्वृतये कान्तासंमिततयोपदेशयुजे ॥ उसने साथ हो यह भी उल्लेख किया है कि कालिदास को काव्यलेखन से यश मिला, बाण को धन और मयूर को रोग से मुक्ति मिली । ३०० काव्यलेखन में सफलता प्राप्ति के लिए तीन सावन बताये गये हैंप्रतिभा ; सुसंस्कृत विद्याध्ययन और उसका उपयोग । प्रतिभा के अभाव में अन्य दो साधनों से कोई भी व्यक्ति कवि हो सकता है । हेमचन्द्र ने नवाभ्यासी के लिए उपदेश दिया है कि वह प्रारम्भिक अभ्यास के लिए किसी कवि के बने हुए श्लोक के तीन चरणों को ले और चतुर्थ चरण स्वयं - बनावे | क्षेमेन्द्र ने अपने ग्रन्थ कविकण्ठाभरण में इस विषय पर विचार - I किया है कि काव्य जगत् में कौन व्यक्ति किस सीमा तक पहुँच सकता है। उसने अपने ग्रन्थ औचित्यविचारचर्चा में यह विवेचन किया है कि रस के परिपाक के लिए औचित्य का ध्यान रखना अनिवार्य है । इन लेखकों ने नवाभ्यासियों के लिए जो उपदेश दिए हैं, वे उपयोगी हैं, परन्तु इसका परिणाम यह हुआ है कि बाद के सामान्य कवियों ने पूर्ववर्ती कवियों के भावों और शब्दावली की ही पुनरावृत्ति की है । कवि अपनी योग्यता का प्रदर्शन विद्वत्सभा में करते थे और विद्वानों की स्वीकृति पर वह वस्तुतः कवि माने जाते थे । राजशेखर ने अपने ग्रन्थ काव्यमीमांसा में उल्लेख किया है कि कालिदास हरिचन्द्र आदि को परीक्षा उज्जैन में हुई थी और उपवर्ष पाणिनि, वररुचि, पतंजलि आदि की परीक्षा पटना में हुई थी। कई बार कवि की योग्यता की परीक्षा इस प्रकार भी की जाती थी कि उसे यह कहा जाता था कि वह किसी बताये हुए १. काव्यप्रकाश १ १०३-१४ । २. दण्डी का काव्यादर्श १.१०३ । ३. राजशेखरकृत काव्यमीमांसा, अध्याय १० ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy