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________________ २६८ संस्कृत साहित्य का इतिहास का वैज्ञानिक विधि से विवेचन है । यह ग्रन्थ अपूर्ण है । वृत्तिवार्तिक में शब्दशक्ति का वर्णन है । केशवमिश्र ने १६वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में अलंकारशेखर ग्रन्थ लिखा है। इसमें उसने शब्दालङ्कारों और अर्थालङ्कारों का ही मुख्यतया विवेचन किया है । उसने साथ ही साथ कवियों के लिए कुछ आवश्यक निर्देश भी दिये हैं । जिन श्रीपाद के विचारों का इस ग्रन्थ में उल्लेख किया गया है उन्हीं के मतानुसार मैथली शैली की भी चर्चा की गयो है । कविकर्णपुत्र की रचना अलंकारकौस्तुभ इसी समय की कृति है। जगन्नाथ ( १५६०-१६६५ ई० ) ने दो ग्रन्थ लिखे हैंरसगंगाधर और चित्रमीमांसाखण्डन । रसगंगाधर अलङ्कारों के विषय में अत्यन्त प्रामाणिक ग्रन्थ है । इसमें उसने अलङ्कारों के लक्षण दिये हैं । अपने उदाहरण देकर उसने इन लक्षणों का विवेचन किया है और अपने पूर्ववर्ती आचार्यों के मन्तव्यों का उल्लेख किया है। वह अपने विवारों में पूर्णतया स्वतन्त्र है। जहाँ पर वह अन्य सूप्रसिद्ध लेखकों के साथ मतभेद रखता है, वहाँ पर बहुत निर्भीकता के साथ उनके मन्तव्यों का खण्डन करता है । उसने ध्वनि-मत का उग्रता के साथ खण्डन किया है और रस-सिद्धान्त को परिपुष्टि की है । उसके निर्णय का भाव उसकी काव्यपरिभाषा से ही स्पष्ट हो जाता है जिसे उसने एक पंक्ति में ही व्यक्त की है--'रमणोयार्थप्रतिपादकः शब्दः काव्यम्' । उसका चित्रमीमांसाखण्डन ग्रन्य अप्पय दीक्षित के चित्रमीमांसा ग्रन्थ का खण्डन है । राजचूडामणि दीक्षित ( लगभग १६०० ई० ) ने काव्यदर्पण ग्रन्थ लिखा है । इस पर उसने अपनी ही टोका अलंकार चड़ामणि लिखी है । विश्वेश्वर १८वीं शताब्दी के प्रारम्भ में हुआ था। उसने अलङ्कारों पर दो ग्रन्थ अलंकारकौस्तुभ और अलंकारकर्णाभरण लिखे हैं। कतिपय लेखकों ने अपने आश्रयदाताओं की प्रशंसा के रूप में काव्यशास्त्रीय ग्रन्थ लिखे हैं । इन ग्रन्थों में उदाहरण के रूप में जो श्लोक दिये गये हैं, वे अधिकांश में अपने आश्रयदाताओं के प्रशंसात्मक हैं ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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