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कालिदास के परवर्ती नाटककार
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विग्रहराजदेव विशालदेव १२वीं शताब्दी ई० में चहमान वंश का एक राजा था । उसने ११५३ ई० में हरकेलिनाटक लिखा है । इसमें किरातवेषधारी शिव और अर्जुन के युद्ध का वर्णन है । यह अधूरा अजमेर में एक शिला पर खदा हा सुरक्षित है। लगभग इसी समय सोमदेव ने ललितविग्रहराजनाटक नामक नाटक लिखा है । वह विग्रहराजदेव का आश्रित कवि था। इसमें उसने अपने आश्रयदाता का राजकुमारी देशालदेवी के साथ प्रेम का वर्णन किया है। यह नाटक भी अजमेर में अपूर्ण रूप में एक शिला पर सुरक्षित है। __ वत्सराज कालंजर के राजा परमादिदेव का मन्त्री था । परमादिदेव ने ११६३ से १२०३ ई० तक राज्य किया है। वत्सराज एक कवि था। उसने ६ नाटक लिखे हैं। उनमें से प्रत्येक रूपक के अप्रचलित भेदों पर है । (१) किरातार्जुनीय । यह भारवि के किरातार्जुनीय पर निर्भर है । यह व्यायोग नाटक है । (२) कर्पूरचरित । यह भाण नाटक है । (३) हास्यचूड़ामणि । यह एक प्रहसन है। (४) रुक्मिणीहरण । यह चार अङ्कों में एक ईहामृग नाटक है । इसमें कृष्ण के द्वारा रुक्मिणी के हरण का वर्णन है। (५) त्रिपुरदाह । यह चार अङ्कों में डिम नाटक है । इसमें शिव के द्वारा त्रिपुर के दाह का वर्णन है । (६) समुद्रमंथन । यह तीन अङ्कों में समवकार नाटक है । इसमें समुद्र के मन्थन का वर्णन है। ___ जयदेव महादेव और सुमित्रा का पुत्र था । वह १३वीं शताब्दी ई० के पूर्वार्द्ध में हुआ था । वह महानैयायिक, साहित्यशास्त्री और नाटककार था। उसको 'पक्षधरमिथ' की उपाधि न्यायशास्त्र की विद्वत्ता के कारण मिली थी और प्रसन्नराघव नाटक में सुन्दर गीतात्मक श्लोकों के कारण पीयूषवर्ष की उपाधि मिली थी। प्रसन्नराघव में सात अङ्क हैं । यह रामायण की कथा पर आश्रित है । इसमें रावण और एक दूसरा राक्षस बाण सीता से विवाह के लिए प्रतिद्वन्द्वी के रूप में हैं। यह पूर्णतया भवभूति के महावीरचरित के अनुकरण पर है । इसमें बहुत से सुन्दर गेय श्लोक है। इसके श्लोक अधिकतर अनाटकीय हैं।