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संस्कृत साहित्य का इतिहास रक्खा था । वेश्या को प्रात्मा ने उस शरीर में प्रवेश किया और वह सजीव हो गया तथा प्रेम-सम्बन्धी विषयों पर उपदेश देने लगा। लेखक को दार्शनिक सिद्धान्तों का अच्छा ज्ञान था, यह ग्रन्थ के पढ़ने से ज्ञात होता है। __ वीणावासवदत्तम् नाम का चार अङ्कों का एक अपूर्ण नाटक प्राप्त होता है । इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार प्रद्योत के द्वारा उदयन को बन्दी बनाए जाने से वासवदत्ता को यह अवकाश मिला कि वह उदयन से वीणा बजाना सीख सके । इस नाटक का लेखक अज्ञात है। इसको शैली के आधार पर इसको ईसवीय सन् की प्रारम्भिक शताब्दी में रखना उचित है । एक अज्ञात लेखक का एक प्रहसन दामक है। इसमें वर्णन किया गया है कि किस प्रकार कर्ण ने परशुराम से अस्त्रशिक्षा प्राप्त की । इस नाटक में कर्ण का एक मित्र दामक विशेष भाग लेता है। भास के नाटकों में जो विशेषता प्राप्त होती है, वह इसमें भी प्राप्त होती है । इसका समय ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में समझना चाहिए ।
दिङनाग ने कुन्दमाला नाटक लिखा है। इसका दूसरा नाम धीरनाग भी है। इसमें ६ अङ्क हैं। इसका आधार रामायण के उत्तरकाण्ड की कथा है । इसका लेखक बौद्ध नैयायिक दिङ नाग से भिन्न व्यक्ति है, क्योंकि वह हिन्दू-विचार वाला नाटक न लिखता । भाषा की सरलता से ज्ञात होता है कि वह २०० ई० के लगभग हुआ होगा । उसका प्रभाव भवभूति ( ७०० ई० ) के उत्तररामचरित पर भी पड़ा है । उसकी सरल शैली की तुलना जब भवभूति की क्लिष्ट और कठोर शैली से की जाती है, तो ज्ञात होता है कि वह. भवभूति से पूर्ववर्ती है । इसके नाटक पर भास और कालिदास का प्रभाव पड़ा है । यह ज्ञात नहीं है कि वह कालिदास का समकालीन है या बाद का । कुछ हस्तलिखित प्रतियों में उसका नाम धीरनाग दिया गया है । यह नाटक सुखान्त है । इसमें अन्त में राम के सम्मुख माता पृथ्वी के द्वारा सीता की पवित्रता सिद्ध की जाती है और कुश तथा लव क्रमशः राजा और