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___ संस्कृत साहित्य का इतिहास
विकता से सर्वथा विपरीत हैं. विशेषरूप से कतिपय ग्रन्थों के लेखक का निर्णय, मूल-ग्रंथ का वास्तविक स्वरूप, कवियों की जन्मतिथि आदि पर उनके निष्कर्ष एकांगी हैं, अन्तिम निष्कर्ष नहीं हैं ।
अतएव संस्कृत-साहित्य का अध्ययन पाश्चात्य आलोचकों की पद्धति पर होना चाहिये । साथ ही उनकी पद्धति में जो त्रुटियाँ हैं, उनका परित्याग करना चाहिये । भारतीय-साहित्य के विद्यार्थी के सन्मुख ऐतिहासिक तथ्यों के अभाव के कारण जो अपूर्णता रह जाती है, उसका भी ध्यान रखना चाहिये और उन्हीं के प्रकाश में अपने निष्कर्ष निकालने चाहिए, तभी संस्कृत साहित्य के वास्तविक रूप को समझ सकते हैं ।