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________________ २२६ संस्कृत साहित्य का इतिहास भी भास की रचना कहा जाता है । इसमें ६ अंक हैं और सातवें अंक का नाम निर्वहणांक है । इसमें पुत्रोत्पत्ति के लिए राजा दशरथ के यज्ञ करने का वर्णन है। भास की नाटयकला कालिदास, बाण और दण्डी आदि ने भास को उच्च कोटि का नाटककार माना है । भाषा और नाट्यकला की दृष्टि से वह अवश्य ही कालिदास से हीन है । उसने तेरह नाटक लिखे हैं, इससे ही ज्ञात होता है कि वह उच्च कोटि का नाटककार था। उसकी भाषा में जो त्रुटियाँ प्राप्त होती हैं, वे बाद के लिपिकर्ताओं के कारण ही समझनी चाहिए। जिस रूप में ये नाटक आजकल प्राप्त होते हैं उस रूप में भास ने इनको नहीं लिखा होगा । इन नाटकों को मूलरूप में लिखने वाला भास अवश्य ही उच्च कोटि का नाटककार रहा होगा । भास के नाटकों की संख्या, उनके भाव और प्रकार की विभिन्नता से सिद्ध होता है कि भास को संस्कृत नाटककारों में जो उच्च स्थान मिला है, वह उचित ही है । उसने बहुत से नाटक लिखे होंगे, परन्तु कुल कितने नाटक उसने लिखे हैं, यह निश्चयपूर्वक नहीं कहा जा सकता है । उसने नाटकीय परम्पराओं का जो उल्लंघन किया है, वह वास्तविकता को आधार मान कर ही किया है। उसने कथानक में जो परिवर्तन किए हैं, उससे उसकी मौलिकता का ज्ञान होता है । जैसे—पंचरात्र में दुर्योधन के चरित में मौलिकता है । कतिपय स्थानों पर पात्रों का प्रवेश और प्रस्थान अस्वाभाविक प्रतीत होता है । यह खेद की बात है कि उसने कितने नाटक लिखे हैं, यह स्पष्ट रूप से ज्ञात नहीं है । जो नाटक प्राप्त हैं, वे भी मूल रूप में नहीं ज्ञात होते हैं । ___ इन तेरह नाटकों के कथानक और नान्दी-श्लोकों से ऐसा ज्ञात होता है कि वह विष्णुभक्त था। भास के प्रशंसकों में बाण और दण्डी विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। देखिए :-- १. पृथ्वीराजविजय १-८ ।
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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