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भूमिका स्थिति है। इसका शब्दकोष सीमित था । यह वर्तमान भाषाओं की उत्पत्ति में मुख्य कारण है । इसने पूर्वप्रचलित विभाषाओं को प्रभावित किया तथा कुछ नई भाषाओं को जन्म दिया। अपभ्रंश के प्रभाव के कारण ही बिहारी, उड़िया और अन्य भाषाओं का जन्म हुआ।
भारतवर्ष में प्रति प्रचीन समय में लेखन-कला का अभाव था । मौखिक ही शिक्षण आदि कार्य होता था। वेदों के लिए श्रुति शब्द, धार्मिक पुस्तकों के लिये स्मृति तथा सूक्त, अनुवाद इत्यादि जो कि ग्रन्थ के विभागों का निर्देश करते हैं, इसी का समर्थन करते हैं। अनुस्वार, विसर्ग, जिह्वामूलीय, उपध्मानीय इत्यादि शब्द इसी का समर्थन करते हैं। व्याकरण के ग्रन्थों तथा रामायण और महाभारत में लेखन-कला का निर्देश मिलता है। लिपि शब्द का प्रयोग लिखित वर्णमाला के अर्थ में हुआ है। लिख धातु का प्रयोग वर्गों के विन्यास या पत्थर और पत्र आदि पर लिखाई के अर्थ में हुआ है। इन उल्लेखों के साथ ही अशोक के शिलालेखों आदि से सिद्ध होता है कि भारतवर्ष में लेखन-कला प्रचलित थी और सम्भवतः इसका प्रचलन ३००० ई० पू० से है ।
अशोक के शिलालेखों से यह बात सिद्ध होती है कि भारतवर्ष में द्वितीय शताब्दी ई० पू० में लेखनकला बहुत उन्नत अवस्था में थी। लिखने की पद्धति बाई ओर से दाहिनी ओर की थी । यद्यपि एक मुद्रा ऐसी भी प्राप्त हई है, जिसमें दाई ओर से बाई ओर लेख है । लेखन कार्य के लिए वृक्षों की छाल और ताड़पत्रों का उपयोग होता था । छाल आदि पर अक्षरों के लिखने के लिए नोकीले लोहे का उपयोग किया जाता था। स्याही के लिए मसी शब्द का प्रयोग द्वितीय शताब्दी ई० पू० में हुआ। लेखन कार्य के उपयोग में आने वाले ताड़पत्रों को क्रमबद्ध करके एक धागे से बाँध दिया जाता था । इस कार्य के लिए पत्तों में निश्चित स्थान पर छेद किया जाता
१. कालिदास के ग्रन्थों में इस अर्थ में लिख् धातु का प्रयोग मिलता है । अभिज्ञानशाकुन्तल अंक ३, रघुवंश ३-२८, कुमारसंभव १-७ ।