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________________ गद्यकाव्य १७५ उपर्युक्त ग्रन्थ के अतिरिक्त यह कथा पद्यात्मक रूप में भी प्राप्त होती है। इस ग्रन्थ का नाम अवन्तिसुन्दरीकथासार है। यह सात परिच्छेद (अध्यायों) में है । अन्तिम परिच्छेद अपूर्ण है । प्रथम परिच्छेद में दण्डी का जीवनचरित है । शेष ६ परिच्छेदों में दशकुमारचरित की पूर्वपीठिका में जो कथा वर्णित है, वही कथा प्राप्त होती है। प्रत्येक परिच्छेद के अन्तिम श्लोक में आनन्द शब्द आया है। इस ग्रन्थ में बाण की कादम्बरी की कथा का साराश भी दिया हुआ है। इस ग्रन्थ का लेखक अज्ञात है। भारतीय परम्परा के अनुसार दण्डी दशकुमारचरित और काव्यादर्श का लेखक है । दशकुमारचरित में तीन भाग हैं-पूर्वपीठिका, मुख्य गद्य भाग तथा उत्तरपीठिका । इनमें से प्रथम भाग में पाँच उच्छवास हैं, द्वितीय में पाठ और तृतीय में कोई विभाजन नहीं है। इसमें राजा मानसार के द्वारा मगध के राजा राजहंस की पराजय का वर्णन है तथा उसका प्रवासित होकर वन में रहने का वर्णन है । वहीं पर उसका पुत्र राजवाहन तथा उसके ६ साथी उत्पन्न हुए। इन 6 में से कुछ राजकुमार थे और कुछ मन्त्रियों के पुत्र थे। ये दसों कुमार अर्थोपार्जन के लिए निकले । वे सब पृथक् हो गए और कुछ वर्षों के बाद पुनः मिले । प्रत्येक ने अपने-अपने भ्रमणका वृत्तांत सुनाया। इन सबने मिलकर राजहंस के शत्रु मानसार पर आक्रमण किया और मगध का राज्य पुनः प्राप्त किया। दशकुमारचरित के ये तीनों भाग तीन विभिन्न लेखकों के द्वारा विभिन्न समय में लिखे हुए प्रतीत होते हैं। शैली की दृष्टि से प्रथम और अन्तिम भाग मध्य वाले भाग से निस्सन्देह निकृष्ट है। प्रथम और द्वितीय भाग के वर्णनों के विवरण में पूर्णतया असामंजस्य है। यह स्पष्ट है कि जिसने प्रथम भाग लिखा है, उसने मध्य के मुख्य भाग की घटनाओं को ठीक नहीं समझा है। इसके अतिरिक्त प्रथम और अन्तिम भाग के कई पाठ-भेद मिलते हैं । इससे यह ज्ञात होता है कि प्रथम और अन्तिम भाग का कुछ अंश नष्ट हो गया था और उस क्षति-पूर्ति के लिए कुछ प्रयत्न किया गया होगा,
SR No.032058
Book TitleSanskrit Sahitya Ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorV Vardacharya
PublisherRamnarayanlal Beniprasad
Publication Year1962
Total Pages488
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size27 MB
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